Sunday, February 6, 2011

बैजनाथ-4

 बैजनाथ जी  जब सब बात करके उठने लगे तो हुक्मे ने उन्हें टोक दिया,बोला,''बड़े भाई, मैं कुछ पूछना चाहता हूँ ,यदि आपकी इजाज़तहोतो?''
बैजनाथ जी वापस बैठते हुए बोले,हाँ-हाँ , हुकम चन्द,इसमें इजाज़त वाली क्या बात है? पूछो क्या पूछना चाहते हो ?''
हुकमा बोला,''बड़े भाई, जब आपने अखाड़े की तैयारी की बात की तो मैंने आप से निवेदन किया था कि मेरे बापू जी अखाड़े का सारा काम करवाने को तैयार हैं और हमारा मिस्त्री आकर सारा काम  आपके निर्देशानुसार अच्छी  तरह से जल्दि से जल्दि पूरा कर जाएगा,पर आपने मेरी बात का कोई उत्तर  ही नहीं दिया, क्या आप इस बात से खुश नहीं हैं,क्या यह बात अपने बापू जी से करके मैंने कोई गलती कि है ? कृपया बताइये , मैं बहुत परेशान हूँ.''
बैजनाथ जी हंसने लगे,बोले,'' यूं तो मैंने निरंजन कि बात का भी कोई जवाब नहीं दिया ,तो क्या मैं निरंजन से भी नाराज़ हूँ ? ना तो मैं किसी की किसी बात से नाराज़ हूँ,और ना ही कभी नाराज़ होता हूँ , और फिर , तुम सब  तो मेरे लिए छोटे भाई की तरह  हो, तुम से तो नाराज़ होने का सवाल ही नहीं पैदा होता. जहाँ तक तुम्हारी बात का सवाल है तो तुम्हारी बात का जवाब जग्गू ने दिया था पर शायद उसकी बात पर तुमने कोई ख़ास ध्यान  नहीं दिया''.
''जग्गू तो खर्चे की बात कर रहा था,जब सारा खर्चा बापू जी करने को तैयार हैं तो फिर क्या दिक्क़त है?''
''तुमने जग्गू  की बात पर ध्यान दिया हो तो तुम्हें याद होगा कि वह भी  तुम्हारी तरह अपने पिता जी से कह कर पूराकामकरवानेकोतैयारहै,इस के अलावा निरंजन रेडियो लाना चाहता है और पण्डित जी मन्दिर की कमेटी वालों से  कह कर सारा काम करवाने को तैयार हैं, पर  बेटा, तुम सब अभी बच्चे हो इसलिए जो कुछ मैं अभी इस बारे में कह रहा हूँ  वो  शायद पूरी तरह  अभी तुम सब की  समझ में ना आये ,इसलिए इस वक़्त  बिना कोई और बात  सोचे-समझे सिर्फ मेरी एक बात अपने-अपने दिमाग में बिठा लो कि मैं यह अखाड़ा बिना किसी की मदद लिए सिर्फ और सिर्फ तुम सब के दम-ख़म पर ही बनाना चाहता हूँ. अब बताओ तुम सब का इस बारे में क्या ख्याल है ?'' 
''अगर ऐसा हो सकता है,तो यह तो सब से अच्छा है ,और हम सब जैसा आप कहेंगे करने को तैयार हैं.'' हुकमा खुश होकर बोला. 
''बड़े भाई, आपको एक बात और बतानी थी,'' निरंजन एकदम से बोला.
''हाँ भाई ,तू भी बोल .'' बड़े भाई ने कहा.
''वो क्या है कि जहाँ मैं,गुप्ता मास्टर जी के पास, रात को मैथ्स कि ट्यूशन पढने जाता हूँ वहीं शमसू ,उसका भाई फैज़ और मौलवी जी का बेटा बशीर भी ट्यूशन पढने आते हैं, तो रात को मैंने उन लोगों को भी अखाड़े के बारे में बताया था,वो तीनों भी  आपसे सीखने के लिए अखाड़े  में आना चाहते हैं,आज रात को वो मुझे फिर मिलेंगे, आप कहो तो उन्हें भी कल बुला लूं?''
निरंजन कि बात सुन कर बैजनाथ जी सोच में पड़ गए.
''क्यों बैजनाथ, किस सोच में पड़ गया बेटा, निरंजन कि बात का जवाब क्यों नहीं देता?''
ना जाने कबसे मन्दिर से निकल कर पंडित जी हम लोगों के पास आन खड़े हुए थे और चुप-चाप खड़े  हम लोगों कि बातें सुन रहे थे, अचानक से उन की आवाज़  सुन कर हम सब सिटपिटा से गए.
पर फिर थोड़ा संभलकर बैजनाथ जी बोले,'' पण्डित जी,आप तो मेरी चिन्ता का कारण अच्छी तरह से जान-समझ रहे हैं,मन्दिर के आहते में अखाड़ा होगा, और ये मेरे मुसलमान बच्चे भी बाकी बच्चों की तरह यहाँ  आकर कसरत आदि करना  चाहेंगे, जहां तक मेरा सवाल है मेरे लिए तो क्या हिन्दू और क्या मुसलमान सब बराबर हैं,पर डरता हूँ कि कल को कोई और कहीं कोई झमेला ना खडा करदे.''
''देख बेटा,ये खतौली है और यहाँ का ये रिकार्ड है कि चारों ऑर चाहे कितनी भी आग क्यों ना लगी हुई हो यहाँ कभी कोई दंगा फसाद नहीं हुआ, चाहे हिन्दू हों चाहे मुस्लिम यहाँ के लोगों में बहुत गहरा भाईचारा है.इसलिए इस बारे में तो  तू  बिलकुल ही निश्चिन्त हो जा.''
''पण्डित जी.आगे भी यही वातावरण बना रहे मैं यही चाहता हूँ.इंसान की बुद्धि कब किस बात पर बिगड़ जाए कुछ नहीं कह सकते इसलिए मैं सोचता हूँ कि अखाड़े का काम अभी कुछ दिन रोक लिया जाए और अखाड़ा मन्दिर की जगह और किस स्थान पर  बन सकता है यह देखा जाए .''
''यह भी  ठीक है,पण्डित जी कुछ सोचते हुए बोले,'' और एहतियात बरतने में कोई हर्ज़ भी  नहीं,अरे भाई ज़रूरी तो यह है कि अखाड़ा बने , और उस  से भी बढ़कर  ज़रूरी यह है कि लड़के-बाले वहाँ आकर कसरत करें ,शरीर बलवान बनाएं और आपस में हिल-मिल  कर रहना सीखें,अखाड़ा कहाँ बने ये कोई बड़ा प्रश्न नहीं है, तू फिक्र मत कर  मैं देखता हूँ कोई ना कोई दूसरी  जगह भी जल्दि ही  मिल जायेगी ''कह कर पण्डित जी निरंजन सेबोले ,''और निरंजन, अभी तू शमसू या और किसी से इस बारे में कुछ मत कहियो,''
सबने पण्डित जी से राम-राम की और वो अपने घर को प्रस्थान कर गए.
अगले दिन सुबह जब बैजनाथ जी कालेज अपनी ड्यूटी पर जा रहे थे तो उन्हें रास्ते में लून्जू के मामा, श्री राम किशन शर्मा, मिल गए ,शर्मा जी मन्दिर से दर्शन आदि करके लौट रहे थे .
 बैजनाथ जी ने हाथ जोड़ कर उन्हें प्रणाम किया तो ,
शर्मा जी खुश होकर कहने लगे,''लो बोल्लो मैं  कहूं राम-राम बैज नाथ राम-राम, जीता रह भाई,अरे आजकल तो सब तरफ तेरे ही चर्चे  हैं , जिसे देखो तेरे ही गुण गावे है अर ये छोरे तो के कव्हैं हैं,तेरे दिवान्ने  ही हो रहे हैं,म्हारा निरंजन बतावै था के  तू इब शहर में भी अखाड़ा शुरू करेगा ,लो बोल्लो मैं कहूं घणीं  ऐ ख़ुशी हुई मन्ने तो  ये जाण  कै.''
 छः फुट से भी ऊपर निकलते क़द वाले शर्मा जी एकदम इकहरे बदन के खुश मिजाज़ आदमी थे.हर फिकरा बोलने से पहले ,''लो बोल्लो मैं कहूं,''
लगाने की उनकी आदत थी और सब उनकी इस आदत से परिचित भी थे.
उनको बीच में ही टोकते हुए बैजनाथ जी बोल पड़े,'' अखाड़ा तो आप के आशीर्वाद से शुरू हो जायगा पर कोई ढंग की  जगह भी तो मिले.''
''लो बोल्लो मैं कहूं, जगह का कौन सा तोड़ा है, नीयत साफ़ होणी चाहिए अच्छे काम के लियो भतेरी जगह.''
''आपकी निगाह में कोई अच्छा  स्थान है तो बताइये ''बैजनाथ जी बोले.
'' लो बोल्लो मैं कहूं   सथान तो  अच्छा ऐ  अच्छा है,मैं निरंजन तै  सारी कहाणी सुण चुका हूँ  अर सारी बात  सुण कै ही कह रह्या हूँ, तू अभी मेरी गैल्यां चाल पड़ मैं तन्ने अभी सथान  भी दिखा  दूंगा अर तेरी तसल्ली भी करा दूंगा.'' शर्मा जी ने कहा 
''पर मैं तो अभी कालेज  जाने   के लिए  निकला था,शर्मा जी,अगर आप कहो तो शाम को जगह देख लेंगे.''
''लो बोल्लो मैं कहूं कौन सा दूर जाणा है, मन्दिर के सामने जी.टी. रोड के दूसरी तरफ लोहे वालों की दुकानों के बीच से जो गली जा रही है,बस वहीं तक तो जाणा है , सथान देख के तू उधर से ही कालेज चला जाइयो.''
पर उधर कौन सा स्थान है, उधर तो छज्जू माली के  सब्जी  के खेत ही हैं.'' बैजनाथ जी कुछ सोचते हुए से बोले.
''लो बोल्लो मैं कहूं,सथान का सारा नक्शा यहीं खड़े-खड़े खींचेगा के? लो बोल्लो  मैं कहूं जी. टी रोड ही तो पार करनी है, कौन सा दिल्ली जाणा है.''
बैजनाथ जी ,''चलिए'',कहते हुए शर्मा जी के साथ हो लिए.        
मन्दिर का आहता पार कर के  दोनों ने जी. टी. रोड की तरफ जाने के लिए छोटा दरवाज़ा पार किया तो जुम्मन नाई के दर्शन हुए.
दोनों को देखते ही जुम्मन ने खीसें निपोरीं और लम्बा सलाम अर्ज़ किया.
''आदाब बजा लाता हूँ हजूर,और सरमा  जी, क्या बात आज  आप खुद ही दाढ़ी बनवाने चले आये  और वो भी इतनी जल्दि ,मैं तो रोज़ की तरह दुकान पे हाज़िर होने ही वाला था.''  


''लो बोल्लो मैं कहूं, अबे जुम्मन, इस तरफ आणे का मतलब क्या सिरफ़ तेरे पास आणा ही है,अबे क्या हर आते-जाते को मूंडेगा?''
बेचारा जुम्मन खिसिया के रह गया तो बैजनाथ जी ने बात बदलते हुए कहा,''जुम्मन भाई,हम लोग ज़रा सामने वाली गली में किसी काम से जा रहे थे,आपसे बाद में मिलते हैं ''     
जुम्मन अपना पहले से ही तेज़ उस्तरा फिर से तेज़ करने का अभिनय करने लगा  और ये दोनों जी. टी. रोड पार करके सामने वाली गली में जा घुसे.
गली के दोनों तरफ जी. टी. रोड की तरफ मुंह बाए  लोहे वालों की बड़ी-बड़ी दुकानें थीं और दुकानों के पीछे से जो खेतों का सिलसिला शुरू होता था तो वो, दुकानों से कोई पांच किलोमीटर दूर से गुज़र रही, रेल की पटरियों तक जा  कर ही दम लेता था.ये गली दुकानों के बीच की कोई पचास फुट की दूरी तक ही पक्की थी उसके बाद ये एक कच्चे रास्ते की सूरत में बदल जाती थी जिसके दोनों तरफ सरकंडों के घने झुण्ड उगे हुए थे.जब तेज़ हवाएं सरकंडों के  इन घने  झुंडों से होकर गुज़रतीं तो ऐसा लगता जैसे कोई बूढ़ी औरत आवाज़ दबाकर ऊँ-ऊँ करती लगातार रो रही हो.  अन्धेरा होने के बाद वैसे भी उधर से अकेले  जाने में  मेरा तो दम ही निकलता था.   
रास्ते के दायीं ऑर शुरू में  छज्जू माली का पपीतों के पेड़ों का  छोटा सा बाग़  था और उसके आगे उसके  और उसके दूसरे नातेदारों के पांच-छः सब्जी के खेत थे.बाग़ से पहले एक बड़ा कुआ भी था जिस में  से पानी निकालने के लिए रहट  चलता था.रहट को चलाने के लिए छज्जू माली का बड़ा पोता बैल को जोत कर उसे हांका करता था. चलते-चलते जब बैल धीमा हो जाता तो लड़का टिटकारी मारता और बैल समझ जाता कि मालिक पीछे है और बिना तेज़ चले छुटकारा नहीं है तो बिचारा बैल फिर तेज़-तेज़ चलने लगता.कुएँ के पास ही बैल के लिए और रहट का सामान रखने के लिए एक काफी बडासा कमरा था जिस में  सर्दियों में रखवाले सोते भी थे.        
इसी कमरे कि बगल में खाली ज़मीन का एक अच्छा-खासा बड़ा टुकडा था जिस पर रहट कीटूटी-फूटी बाल्टियां और दूसरा कबाड़ बिखरा पड़ा था.
ज़मीन के इस खाली टुकड़े के पास पहुँच कर शर्मा जी रुक गए और बोले,
'' लो बोल्लो मैं कहूं ,देख भाई बैजनाथ,इस तरफ जो यह ज़मीन  है वो सारी मुन्सिपल बोर्ड की है और छज्जू और उसके रिश्तेदारों ने पट्टे पर ली हुई है.यह जो खाली जगह है ये शुरू से ही ऐसे ही खाली पड़ी है.इस में से थोड़ी जगह छज्जू के कबाड़ के लिए छोड़ कर थोड़ा आगे सरक कर तू अपना अखाड़ा जमा ले.''
''जगह तो बहुत मौके की है पर शर्मा जी ,छज्जू या उसके किसी रिश्तेदार को इस से ऐतराज़ हो सकता है.आखिर ज़मीन का मामला है.''
लो बोल्लो मैं कहूं ऐतराज़ का के मतलब ,तू कौण सा  अपनी खातिर कब्जा      
जमान खातर  आवेगा अरै बालकां ने खेलना है उस में के ऐतराज़?''
इतने में इन दोनों को वहाँ आया देख छज्जू माली का बेटा जो खेतों से मूलियाँ उखाड़ रहा था वहीं आ गयाऔर शर्मा जी को हाथ जोड़ प्रणाम कर बोला,''धन्न भाग  म्हारे,शर्मा जी,जो आज आपने म्हारे खेतां तक आण  की मेहरबानी की ,हुकम करो के सेवा करूँ, बापू तो अभी-अभी थारे आगे-आगे लुहारां के घर गया है ,कुछ दरांती और खुरपे ठीक कराने  थे.''
शर्मा जी ने बैजनाथ जी की तरफ इशारा करते हुए छज्जू के बेटे को सारी बात समझाई और फिर उस से उसकी राय पूछने लगे.
''शर्माजी ,बात तो आपकी ही सही जैसी है पर बिना बापू ते बूझे आप जाणों   मैं कुछ नहीं कह सकता .''
''लो बोल्लो मैं कहूं ,हम कूण सा अभी अखाड़ा जमा रहे हैं, तू अपणे बापू से 
बूझ रखियो ,थारी सब की बात ऊपर रखन खातर  अर थारी इज्ज़त  करण
खातरही तो  थारी   इजाज़त मांगें हैं .''
'' मैं सब जाणूशर्मा जी , हम आप से बाहर कोन्नी,आप खातिर जमा रखो मैं जल्दि आप की दुकान पे पहुँच के आप को खबर करूंगा ''.  
''ये क्या शर्मा जी,आप तो कह रहे थे कि यह बोर्ड कि जगह है इसलिए कोई झमेला नहीं होगा पर आप तो ढके-छुपे एक तरह से उसे धमका ही रहे थे,ऐसे डरा-धमका कर अखाड़ा बनाना मुझे अच्छा नहीं लगता,आप मेरी बात का बुरा मत मानियेगा,मैं माफ़ी चाहता हूँ.'' वहाँ से लौटते हुए रास्ते में बैजनाथ जी बोले.
''लो बोल्लो मैं कहूं , इस में धमकाने  वाली कौण सी बात हो गई, तू छोड़ सारी बात्तां ने अर धपेरे जब कालज से वापस आवे तो अपणे चबारे पे ना जाके म्हारी दुकान पे आ जाइयो,वहीं तेरे सामणे सारी बात करवा दूंगो.''
   दोपहर को छुट्टी के बाद जब बैजनाथ जी शर्मा जी कि दुकान पे पहुंचे तो वहाँ तो अच्छा-खासा मजमा लगाहुआ था,शर्मा जी के पास कुर्सियों पर पण्डित जी और बोर्ड के सेक्रेटरी साहब बैठे थे और दुकान के बाहर एक बेंच पर छज्जू माली  बैठा था.
बैजनाथ जी को आता देख छज्जू  हाथ जोड़ कर खडा हो गया .
बैजनाथ जी ने उसके हाथ पकड़ लिए और बड़े प्यार से बोले,''छज्जू काका,मैं तो आपके बड़े पोते से कुछ ही बड़ा हूँ ,फिर मेरे आगे हाथ जोड़ कर मुझे क्यों शर्मिन्दा करते हो.''
''वो तो सब आप लोगन का बड़प्पन है जो इतना  मान-सामान देते हो बाकी हम तो आप लोगन कि परजा हैं.''छज्जू बोला.
''लो बोल्लो मैं कहूं,छज्जू ,छोड़ ये सब बातें और बैजनाथ को साफ़-साफ़ सारी बात कह दे जिस से उसके मन में कोई भरम ना रह जाए.''
छज्जू कुछ बोले उस से पहले ही पण्डित जी बोल उठे,कहने लगे ,''देख ले बैजनाथ इस को कहते हैं जहां चाह वहाँ राह.तेरे अखाड़े के लिए ना तो छज्जू को कोई ऐतराज़ है और ना ही सेक्रेटरी साहब को.अरे ये अपना छज्जू तो  एक ज़माने में माना हुआ पहलवान होता था ,बेचारा एक रात को छत से गिर के अपनी टांग तुडवा बैठा था तबसे इसे  पहलवानी क्या अखाड़े का रास्ता भी छोड़ना पड़ा.''
''अरे पण्डित जी, छोडो पुरानी बातें और कल सूरज चढ़े बजरंगबली के नाम का परसाद बंटवा दो , और जम जाने दो अखाड़ा.'' छज्जू जैसे  मस्ती में झूम उठा. 
बैजनाथ जी ने आगे बढ़कर छज्जू को अपने कन्धों पर उठा लिया और लगे ख़ुशी में नाचने.
राह चलते लोग भी रुक कर नज़ारा देखने लगे.छज्जू ने बैजनाथ जी को बड़ी मुश्किल से रोका और उनके कन्धों से उतर कर हाथ जोड़ कर सेक्रेटरी साहब से बोला,''सरकार,जो बखत पण्डित जी बतावें उस बखत कल सबेरे आप भी  पधारें , कल इतवार भी है छुट्टी का दिन तो कल  ही अगर  अखाड़े का मुहूर्त हो जाए तो सब को सुभीता भी रहेगा''
सेक्रेटरी साहब बोले ,''मैं ठीक वक़्त पर ज़रूर पहुँच जाऊंगा.''
''लो बोल्लो मैं कहूं,मन्ने तो सारा दही जमाया अर मन्नैं ही कोई बूझ भी ना रह्या,वाह भाई वाह यो घंड़ी चोखी रही ''. 
शर्मा जी कि बात पर खूब ज़ोरों का ठहाका गूंजा और उसके बाद पण्डित जी बोले ,''कल सुबह दस बजे का टाइम ठीक रहेगा,तब तक धूप भी खिल चुकी होगी ,सब आराम से आ जायेंगे तब भूमि पूजन करवा के बजरंगबली के नाम का प्रशाद भी बंटवा देंगे और अखाड़े का मुहूर्त भी करवा देंगे.''
शाम को बैजनाथ जी ने यह शुभ समाचार हम सब को सुनाया और हम सब को अगली सुबह अखाड़े कि जगह पर ठीक आठ बजे पहुँच जाने को कहा.
मुझे अच्छी  तरह से याद है कि  यह सब सुन कर मैं इतने अधिक उत्साह में था कि उस रात मुझे बहुत देर तक नींद नहीं आई थी. 
मेरे लिए यह एक बिलकुल नया अनुभव होने वाला था.


(तो यह हुई अखाड़ा कहाँ बने इसकी कहानी.अब आगे कि बात बैजनाथ-5  में पढेंगे.तब तक के लिए राम-राम.)      

4 comments:

  1. हिन्दी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है, कामना है कि आप इस क्षेत्र में सर्वोच्च बुलन्दियों तक पहुंचें । आप हिन्दी के दूसरे ब्लाग्स भी देखें और अच्छा लगने पर उन्हें फालो भी करें । आप जितने अधिक ब्लाग्स को फालो करेंगे आपके अपने ब्लाग्स पर भी फालोअर्स की संख्या बढती जा सकेगी । प्राथमिक तौर पर मैं आपको मेरे ब्लाग 'नजरिया' की लिंक नीचे दे रहा हूँ आप इसका अवलोकन करें और इसे फालो भी करें । आपको निश्चित रुप से अच्छे परिणाम मिलेंगे । धन्यवाद सहित...
    http://najariya.blogspot.com/

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  2. आदरणीय सुशील जी , नमस्कार.
    सबसे पहले तो मेरा उत्साह वर्धन एवं मार्ग दर्शन करने के लिए बहुत -बहुत धन्यवाद . नए व्यक्तियों के लिए जो दिशा-निर्देश आपने दिए हैं वे सब के सब बहुत महत्वपूर्ण हैं और मुझे पूर्ण विशवास है कि मैं भी इनका अनुसरण करके कुछ न कुछ सफलता अवश्य प्राप्त कर पाऊंगा.मैं अभी कम्प्युटर से भी परिचय बढाने के प्रयास कर रहा हूँ ,धीरे - धीरे सब सीख जाऊंगा. एक बार पुनः धन्यवाद.-उपेन्द्र

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  3. डॉ.पुरषोत्तम मीणा 'निरंकुश' जी ,नमस्कार
    मेरा उत्साह वर्धन करने के लिए धन्यवाद.भविष्य में भी आपका कृपा-आशीर्वाद रहा तो अवश्य आनन्दित होउंगा.एक बार पुनः धन्यवाद.

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  4. इस सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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