सैय्यद साहब के निर्देशानुसार शमसू ने फोन करके पुलिस थाने में तुरन्त इत्तला कर दी थी.
इत्तफाक से उन दिनों खतौली में जो थाना इंचार्ज थे,उनका नाम भी बैजनाथ ही था.दरोगा जी बड़े नेक, मेहनती और न्यायप्रिय पुलिस आफिसरथे.उनके इन्हीं गुणों के कारण जनता उनकी दिल से इज्ज़त करती थी.
उस रात दरोगा जी थाने के कामों से जल्दी छुट्टी पाकर आराम से जल्दी ही सो गए थे.अगले दिन रविवार था,यानी कोर्ट-कचहरी की छुट्टी.अतः उनका मन भरपूर नींद सोने का था.वैसे भी भरपूर नींद और पूरा आराम, पुलिसवालों को मुक्क़दर से ही नसीब होता है.भरपूर नींद उस रात भी दरोगा जी के मुक्क़दर में नहीं थी.
रात को डेढ़ बजे से थोड़ा ऊपर का समय हुआ होगा जब सिर्फ कच्छे-बनियान पर काला कम्बल लपेटे, घबराए हुए, थाने के मुंशी लाल सिंह ने उन्हें झिंझोड़ कर गहरी नींद से जगाया.
लाल सिंह ने जल्दी-जल्दी क्या कहा, नींद की खुमारी के कारण पहले तो दरोगा जी के पल्ले कुछ भी नहीं पड़ा पर फिर जब ''डाका'', '' नियादर '' और ''एक आदमी की मौत '' आदि शब्दों ने उनकी चेतना पर एक-एक कर के टकराना शुरू किया तो दरोगा जी की नींद की खुमारी जैसे हवा में काफूर बनकर उड़ गयी और वो अपने बिस्तर पर संभल कर बैठ गएऔर उन्होंने लाल सिंह से सारी बात ब्यौरे-वार फिर से सुनी .
(यानी ऐन ज़रूरत के वक़्त ज़रूरी चीज़ का गायब पाया जाना .)
ठीक कुछ ऐसी ही स्थिति आज थाने की थी,थाने की सरकारी जीप मिस्त्री के पास मरम्मत के लिए आज शाम को ही भेजी गयी थी , उनकी मोटर-साइकिल पर थाने का हवलदार एक सिपाही को साथ लेकर दिन में तहसील गया था,जहां से वापसी पर उन्होंने तहसील के पास वाले एक गाँव में भी जाना था.उस गाँव में एक गैर-ज़मानती वारंट की तामील होनी थी.लगता था कि जिस आदमी के नाम वारंट था वो मिला नहीं था और दोनों जने उसकी इंतज़ार में रात भर के लिए वहीं उसी गाँव में रुक गए थे और कल किसी समय दिन से पहले वो लौटने वाले नहीं थे.
यानी इस वक़्त थाने में ना तो जीप उपलब्ध थी,ना उनकी मोटर-साइकिल और कोढ़ में खाज ये कि थाने में सिपाही भी इस वक़्त सिर्फ पांच ही बचे थे क्योंकि दो सिपाही पहले से छुट्टी पर भी गए हुए थे .
क्योंकि कम से कम एक सिपाही का थाने में रहना ज़रूरी था,दरोगा जी ने मुंशी लाल सिंह को तो थाने में छोड़ा और खुद जल्दी-जल्दी बाकी चार सिपाहियों को साथ लेकर साइकिलों पर ही मौकाए वारदात ,सैय्यद साहब की हवेली , की तरफ जाने की तैय्यारी करने लगे.
शर्फु होश में तो आ गया था,पर कमीनों ने बड़ी जोर से उसके सर पर चोट मारी थी जिसकी वज़ह से उसका सर मारे दर्द के फटा जा रहा था, इसीलिए जब बब्बन ने हवेली में अन्दर वाले भाग में सैय्यद साहब के पीछे जाने की जिद की तो वो कुछ ना बोल सका,बस अपना सर थामे उकडू बैठा रहा, परन्तु बब्बन के जाने के कुछ ही समय बाद जब पहले बब्बन की ललकार फिर गोली चलने की आवाज़ और फिर बब्बन की दिल-दहला देने वाली चीख,ताबड़तोड़ आगे-पीछे सुनाई दीं तो जैसे उसके शरीर में बिजली का करंट ही दौड़ गया,और वो पास में रखी अपनी लाठी उठाकर तुरंत खडा हो गया और बिना आगा-पीछा सोचे हवेली के अन्दर बब्बन की चीख की दिशा में लपक लिया.
उस रात दरोगा जी थाने के कामों से जल्दी छुट्टी पाकर आराम से जल्दी ही सो गए थे.अगले दिन रविवार था,यानी कोर्ट-कचहरी की छुट्टी.अतः उनका मन भरपूर नींद सोने का था.वैसे भी भरपूर नींद और पूरा आराम, पुलिसवालों को मुक्क़दर से ही नसीब होता है.भरपूर नींद उस रात भी दरोगा जी के मुक्क़दर में नहीं थी.
रात को डेढ़ बजे से थोड़ा ऊपर का समय हुआ होगा जब सिर्फ कच्छे-बनियान पर काला कम्बल लपेटे, घबराए हुए, थाने के मुंशी लाल सिंह ने उन्हें झिंझोड़ कर गहरी नींद से जगाया.
लाल सिंह ने जल्दी-जल्दी क्या कहा, नींद की खुमारी के कारण पहले तो दरोगा जी के पल्ले कुछ भी नहीं पड़ा पर फिर जब ''डाका'', '' नियादर '' और ''एक आदमी की मौत '' आदि शब्दों ने उनकी चेतना पर एक-एक कर के टकराना शुरू किया तो दरोगा जी की नींद की खुमारी जैसे हवा में काफूर बनकर उड़ गयी और वो अपने बिस्तर पर संभल कर बैठ गएऔर उन्होंने लाल सिंह से सारी बात ब्यौरे-वार फिर से सुनी .
सैय्यद साहब की हवेली में नियादर और उसके साथियों ने घात लगाई है,जहां ये बात घबराहट पैदा करने वाली थी वहीं ये जानकर उन्हें थोड़ी राहत मिली कि जो आदमी मारा गया था वो एक डाकू था, सैय्यद साहब के घर का कोई सदस्य नहीं.
पर वो एक कहावत है ना , ''शिकार के बखत कुतिया हगाई,''
(यानी ऐन ज़रूरत के वक़्त ज़रूरी चीज़ का गायब पाया जाना .)
ठीक कुछ ऐसी ही स्थिति आज थाने की थी,थाने की सरकारी जीप मिस्त्री के पास मरम्मत के लिए आज शाम को ही भेजी गयी थी , उनकी मोटर-साइकिल पर थाने का हवलदार एक सिपाही को साथ लेकर दिन में तहसील गया था,जहां से वापसी पर उन्होंने तहसील के पास वाले एक गाँव में भी जाना था.उस गाँव में एक गैर-ज़मानती वारंट की तामील होनी थी.लगता था कि जिस आदमी के नाम वारंट था वो मिला नहीं था और दोनों जने उसकी इंतज़ार में रात भर के लिए वहीं उसी गाँव में रुक गए थे और कल किसी समय दिन से पहले वो लौटने वाले नहीं थे.
यानी इस वक़्त थाने में ना तो जीप उपलब्ध थी,ना उनकी मोटर-साइकिल और कोढ़ में खाज ये कि थाने में सिपाही भी इस वक़्त सिर्फ पांच ही बचे थे क्योंकि दो सिपाही पहले से छुट्टी पर भी गए हुए थे .
क्योंकि कम से कम एक सिपाही का थाने में रहना ज़रूरी था,दरोगा जी ने मुंशी लाल सिंह को तो थाने में छोड़ा और खुद जल्दी-जल्दी बाकी चार सिपाहियों को साथ लेकर साइकिलों पर ही मौकाए वारदात ,सैय्यद साहब की हवेली , की तरफ जाने की तैय्यारी करने लगे.
शर्फु होश में तो आ गया था,पर कमीनों ने बड़ी जोर से उसके सर पर चोट मारी थी जिसकी वज़ह से उसका सर मारे दर्द के फटा जा रहा था, इसीलिए जब बब्बन ने हवेली में अन्दर वाले भाग में सैय्यद साहब के पीछे जाने की जिद की तो वो कुछ ना बोल सका,बस अपना सर थामे उकडू बैठा रहा, परन्तु बब्बन के जाने के कुछ ही समय बाद जब पहले बब्बन की ललकार फिर गोली चलने की आवाज़ और फिर बब्बन की दिल-दहला देने वाली चीख,ताबड़तोड़ आगे-पीछे सुनाई दीं तो जैसे उसके शरीर में बिजली का करंट ही दौड़ गया,और वो पास में रखी अपनी लाठी उठाकर तुरंत खडा हो गया और बिना आगा-पीछा सोचे हवेली के अन्दर बब्बन की चीख की दिशा में लपक लिया.
लट्टू सिंह और शमसू ,दोनों एक पल को तो एक-दुसरे का मुंह ही ताकते रह गए पर फिर वो दोनों भी शर्फू के पीछे लपके.
अन्दर का खौफनाक नज़ारा देखकर तीनों के मुंह फटे के फटे रह गए ,
शमसू दौड़कर सैय्यद साहब से जा लगा.
लट्टू एक बार बब्बन की लाश के पास ठिठका पर फिर वो लहुलुहान बैजनाथ जी की तरफ दौड़ा.लट्टू की तरफ देख कर बैजनाथ जी के ज़ख़्मी चेहरे पर एक मुस्कराहट उभरी पर मुस्कराने जैसे छोटे से काम से ही उनके चेहरे के ज़ख्मों में ऐसी टीस उठी कि मुस्कराहट के स्थान पर उनका चेहरा पीड़ा से भर गया.
शर्फु दौड़कर बब्बन के मृत शरीर के पास पहुंचा, बब्बन की छाती से भल-भल करता खून उबला पड़ रहा था,और उसके आस-पास की ज़मीन लाल होती जा रही थी. शर्फू को आज समझ में आया कि उसके अपने दिल में बब्बन के लिए कितना प्यार था,उसके कलेजे में एक हूक सी उठने लगी , वो बब्बन कि लाश के पास धप्प से ज़मीन पर बैठ गया और उसकी आँखों से आंसुओं की धार बह निकली.
अन्दर का खौफनाक नज़ारा देखकर तीनों के मुंह फटे के फटे रह गए ,
शमसू दौड़कर सैय्यद साहब से जा लगा.
लट्टू एक बार बब्बन की लाश के पास ठिठका पर फिर वो लहुलुहान बैजनाथ जी की तरफ दौड़ा.लट्टू की तरफ देख कर बैजनाथ जी के ज़ख़्मी चेहरे पर एक मुस्कराहट उभरी पर मुस्कराने जैसे छोटे से काम से ही उनके चेहरे के ज़ख्मों में ऐसी टीस उठी कि मुस्कराहट के स्थान पर उनका चेहरा पीड़ा से भर गया.
शर्फु दौड़कर बब्बन के मृत शरीर के पास पहुंचा, बब्बन की छाती से भल-भल करता खून उबला पड़ रहा था,और उसके आस-पास की ज़मीन लाल होती जा रही थी. शर्फू को आज समझ में आया कि उसके अपने दिल में बब्बन के लिए कितना प्यार था,उसके कलेजे में एक हूक सी उठने लगी , वो बब्बन कि लाश के पास धप्प से ज़मीन पर बैठ गया और उसकी आँखों से आंसुओं की धार बह निकली.
सैय्यद साहब ने शर्फु का कन्धा थप-थपाकर उसे सांत्वना दी और शमसू से
थाने में खबर करने की बाबत पूछा.
कमरे के नज़ारे से सहमे शमसू ने उन्हें बताया कि उसने थाने में तुरंत खबर कर दी थीऔर पुलिस आती ही होगी.
कमरे के नज़ारे से सहमे शमसू ने उन्हें बताया कि उसने थाने में तुरंत खबर कर दी थीऔर पुलिस आती ही होगी.
लट्टू को बैजनाथ जी को पानी पिलाता और संभालता देख सैय्यद साहब ने शमसू को रफीक का चाकू थमाया और उससे सब की रस्सियाँ काटने को कहा और खुद सामने वाले अपनी अम्मी जी के कमरे की तरफ लपके.
अम्मी जी के कमरे की बाहर से लगी सांकल खोल कर सैय्यद साहब जब अन्दर घुसे तो नीम-अँधेरे कमरे में उन्हें कुछ नज़र ही नहीं आया, पर फिर उन्हें गों-गों की सी आवाज़ सुनाई दी.
सैय्यद साहब ने आगे बढ़कर जलते लैम्प की मद्धम लो को तेज़ किया तो कमरा रौशनी से भर गया.
अम्मी जी और शफ्फो बुआ दोनों एक साथ अम्मी जी के पलंग पर बंधी पड़ी थीं.दोनों के मुंह भी उनके दुप्पट्टे से बंधे हुए थे.
सैय्यद साहब ने दोनों के बंधन खोले और अपनी अम्मी जी के हाथ-पैर सहलाते हुए उन्हें तस्सली देने लगे.कुछ भी कहो अम्मी जी का हौसला काबिले तारीफ़ था.
जब से डाकू उन्हें और शफ्फो को बांधकर,तिजोरी लूटकर कमरे की सांकल बाहर से लगा कर गए थे अम्मी जी के दिल की घबराहट बढती ही जा रही थी.रह-रह के तरह-तरह के बुरे-बुरे ख्याल उनके दिलो-दिमाग को परेशान किये जा रहे थे.
सैय्यद साहब को सही सलामत पाया तो अम्मी जी के चेहरे की रंगत ही लौट आई,उन्होंने बड़े प्यार से अपने पास पलंग पर बैठे सैय्यद साहब का चेहरा अपने दोनों हाथों में लिया और बेटे का सर थोड़ा सा अपनी ओर झुका कर उनकी पेशानी पर चूम कर उन्हें आशीर्वाद दिया और बोलीं, ''नन्हे मियां,हमें दो घूँट पानी पिलाइए ,मरों ने दुपट्टे से ऐसा मुंह बांधा कि मारे प्यास के हलक ही सूखा जा रहा है,''अम्मी जी सैय्यद साहब को नन्हे मियाँ कह के बुलाती थीं.
अम्मी जी को अपने हाथों से पानी पिलाते हुए सैय्यद साहब की निगाह सामने दिवार से लगी तिजोरी की ओर उठ गयी,चौपट खुली पड़ी खाली तिजोरी अपनी कहानी खुद कह रही थी.
कुछ घूँट पानी गले से उतार कर अम्मी जी ने पानी का गिलास सैय्यद साहब के हाथों से ले कर शफ्फो बुआ की तरफ बढ़ा दिया और उसे पानी पीने को कहा.
पानी का गिलास शफ्फो बुआ को पकड़ाकर अम्मी जी पलंग से उतरती हुई सैय्यद साहब से बोलीं, ''नन्हें मियाँ, आप चलिए,पीछे-पीछे हम भी शफ्फो को साथ लेकर आती हैं,हमें बहु बेगम और बाकी सब बच्चों से भी मिलना है.''
''अम्मी जी आप ज़हमत ना उठाएंऔर यहीं आराम करें,खुदा खैर रक्खे सब खैरियत से हैं और अभी ज़रा सी देर में आप को सलाम करने आप के पास यहीं हाज़िर होंगे.'' सैय्यद साहब अम्मी जी को बड़े कमरे में जाने से रोकने की कोशिश में बोले.
''नहीं नन्हें मियाँ,हमें रोकने की कोशिश भी मत करिए,हम वहीं जाकर सब से मिलेंगे.''
अम्मी जी की आवाज़ की मजबूती से सैय्यद साहब समझ गए कि अम्मी जी को रोकने की कोशिश बेकार है तो बोले, '' जैसी आपकी मर्ज़ी,आइये हमारे साथ ही चलिए ''.
सैय्यद साहब की अम्मी जान कहने को अस्सी ईद के चाँद देख चुकी थीं परन्तु तना हुआ उनका इकहरा बदन और पाकीज़गी से दमकता गुलाबी रंगत लिए उनका नूरानी चेहरा उन्हें किसी भी स्वस्थ प्रौढा से इक्कीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं ठहराता था.
सैय्यद साहब जब अम्मी जी और शफ्फो बुआ को साथ लेकर बड़े कमरे में पहुंचे तो सब के सारे बन्धन काटे जा चुके थे परन्तु कमरे में पड़ी तीन-तीन लाशों और ताज़ा गुज़रे सारे हालात की दहशत सब के चेहरों पर साफ़ लिखी नज़र आ रही थी.
फैज़ के होठों से खून बहना बंद हो चुका था और मुंह अच्छी तरह से गीले कपडे से पोंछ दिए जाने के बाद वो अब पहले से बहुत बेहतर नज़र आ रहा था, पर उसका निचला होठ अभी भी थोड़ा सूजा हुआ था .
सैय्यद साहब की बेगम और उनकी बड़ी बेटी दोनों बच्चों को गोद में लिए उन्हें होश में लाने की कोशिश कर रहीं थीं,उनकी दोनों छोटी बेटियाँ बच्चों के पैर सहला रही थीं.
सैय्यद साहब के दामाद मियाँ एक गीले कपडे से बहुत ही ऐतिहात से धीरे-धीरे बैजनाथ जी का लहुलुहान चेहरा पोंछने की कोशिश में लगे थे.
सैय्यद साहब ने शर्फु ,लट्टू,फैज़ और शमसू को ड्योढ़ी वाले कमरे में जाकर पुलिस का इंतज़ार करने को कहा और खुद बैजनाथ जी के पास पहुंचे.
कमरे के नज़ारे से रोमांचित अम्मी जी धीरे-धीरे दोनों बेहोश बच्चों की तीमारदारी में लगी अपनी बहु बेगम के पास पहुँचीं और उनके सर पर हाथ रख कर बेहोश बच्चों का और बैजनाथ जी का मुंह ताकते हुए ही बोलीं, ''नन्हें मियाँ ,किसी को भेजकर जल्दी से डाक्टर को भी तो बुलवाइए.''
'' बस अब भेजते हैं '',कह कर सैय्यद साहब ज्यों ही कमरे से बाहर जाने के लिए मुड़े ,हवेली के दरवाज़े पर ज़ोरों की दस्तक गूंजी.
'' शायद पुलिस आ गई है,हम देखते हैं, आप लोग अपने को संभालिये '' कहते हुए सैय्यद साहब तेज़ी से कमरे से बाहर निकल गए.
दरोगा बैजनाथ और उनके चारों सिपाही जब बारी-बारी से दरवाज़े की खिड़की से होकर ड्योढ़ी में दाखिल हुए तो उन्हें शर्फु आदि के साथ अपने सामने सैय्यद साहब खड़े नज़र आये.
दरोगा जी के सलाम के जवाब में सैय्यद साहब ने उनसे कहा की पहले किसी एक सिपाही को भेजकर पास में रहने वाले डाक्टर भगत राम को जल्दी से जल्दी बुलवा लें और फिर सैय्यद साहब दरोगा जी का हाथ पकड़कर ड्योढ़ी वाले कमरे में ले गए.जहां शफीक नंगी हालत में बंधा हुआ बेहोश पडा था.
शफीक की हालत देख दरोगी जी चौंके और बोले,'' ये तो बेहोश है, हमें तो बताया गया था कि एक डाकू मारा गया है.''
''एक नहीं तीन डाकू मारे गए हैं और दो बेहोश बंधे पड़े हैं एक ये आपके सामने और दूसरा ऊपर छत पर.'' और सैय्यद साहब ने दरोगा जी को जल्दी-जल्दी सारा वाकया बयान किया.
नियादर मारा गया है ,इस खबर को सुनकर दरोगा जी ने राहत की एक लम्बी सांस ली और सैय्यद साहब से बोले, ''आप अन्दर ज़नानेमेंपहुँचिये,
मैं बाक़ी इंतज़ाम करता हूँ ''.
पोलीस के पहुँचने के बाद हड़कंप सा मच गया.
एक सिपाही पास में रहने वाले डाक्टर भगत राम को बुलाने भागा, दूसरा सरकारी अस्पताल के डाक्टर जैन को बुलाने अस्पताल की तरफ साइकिल लेकर दौड़ा ,खतौली में पहली बार इतनी बड़ी वारदात हो गई थी.
बाहर गली में आस-पड़ोस की गलियों से निकल-निकल कर कम्बल में लिपटे लोग इकट्ठे होने शुरू हो गए थे.
हवेली से लगे खंडहर कहलाने वाले मकान में रहने वालों के कानों पर अभी तक जूँ भी नहीं रेंगी थी.सब जैसे घोड़े बेचकर सोये थे.
डाक्टर साहब के आने से पहले दरोगा जी बाक़ी दोनों सिपाहियों को लेकर ऊपर छत पर पहुंचे .
छत पर खुले आसमान के नीचे ठण्ड में बंधा पडा बेहोश नूरा , बेहोशी में ही ठण्ड से जकड़कर मर गया था.
बड़ी मुश्किल से दोनों सिपाही, लट्टू और शर्फु की मदद से नूरे की लाश नीचे ला पाए. फिर पाखाने से अंसार की लाश निकाली गयी.
दरोगी जी दोनों सिपाहियों को साथ लेकर ज़नाने कमरे के दरवाज़े पर पहुंचे और अन्दर आने की इजाजत मांगी.
सैय्यद साहब बाहर आकर दरोगा जी को अन्दर ले गए.
कमरे की चौखट पर खड़े होकर दरोगा जी ने अन्दर चारों ओर नज़र दौड़ाई, और फिर अन्दर घुस गए.और हालात का जायजा लेने लगे.
कमरे के फर्श पर पड़ी तीनों लाशें अभी भी गर्म थीं.दोनों बच्चों के चेहरे की रंगत पिली पड़ी हुई थी,अभी तक उन्हें होश नहीं आया था.
बैजनाथ जी के चेहरे का खून बहना बंद नहीं हुआ था.
जेवर और नकदी से भरे दोनों थैले अभी भी उपेख्यित से दरवाज़े के पास पड़े थे,जिन्हें उठाकर दरोगा जी ने सैय्यद साहब को पकड़ाकर संभालकर रखने को कहा.
कमरे की छत के हुक से बंधे लटक रहे रस्सी के टुकड़े हवा से धीरे-धीरे हिल रहे थे.
दरोगा जी अभी सारे हालात का जायजा ले ही रहे थे कि भारी शरीर वाले डाक्टर भगत राम हाँफते-हाँफते आन पहुंचे.वो शायद अपने घर से ही दौड़ते
हुए आ रहे थे.
कमरे में एक नज़र डाल डाक्टर साहब सीधे लहुलुहान बैजनाथ जी की तरफ बढे,पर बैजनाथ जी ने उन्हें हाथ के इशारे से बीच में ही रोक दिया और इशारे से दोनों बच्चों की तरफ उनका ध्यान आकर्षित करवाया.
डाक्टर साहब ने एक बड़ी प्रशंसा भरी निगाह बैजनाथ जी पर डाली और बच्चों की ओर बढ़ गए.
सैय्यद साहब ने उन्हें बच्चों के छत से उलटा लटकाए जाने के बारे में और बाक़ी सब हालात के बारे में बताया.
बारीकी से मुआयना करने के बाद डाक्टर साहब ने दोनों बच्चों को बारी-बारी इंजेक्शन लगाए और सैय्यद साहब से बोले, '' घबराने की कोई बात नहीं है , बच्चे गहरी दहशत की वज़ह से बेहोश हैं,मैंने इंजेक्शन दिया है,अभी थोड़ी देर में इन्हें होश आ जाएगा,इन्हें कुछ बिस्कुट वगेरह खिला कर मैं इन्हें फिर से नींद का इंजेक्शन दूंगा ताकी सुबह तक ये ठीक हो सकें.'' कह कर डाक्टर साहब बैजनाथ जी के पास आये.
तब तक सरकारी अस्पताल के डाक्टर श्री जैन भी आन पहुंचे.
दोनों ने मिलकर बैजनाथ जी के ज़ख्मों का मुआयना किया.
बैजनाथ जी के दोनों बाजू,चेहरा और छाती सब बुरी तरह लहू-लुहान थे,
डा. जैन बोले,सैय्यद साहब, इस लड़के की हालत बहुत खराब है,इस के दोनों बाजुओं पर गहरे ज़ख्म हैं, छाती पर भी घाव हैं और बायाँ गाल तो अन्दर तक कट गया है,ज़ख्म बहुत लंबा भी है,जिसका खून बहना बंद नहीं हो रहा,ये तो कुछ ज़्यादा ही हिम्मती है वरना जितना खून इस का बह चुका है ये अब तक बेहोश हो गया होता.बड़े अफ़सोस की बात है, पर क्या करें, हमारे पास यहाँ इसके लिए ज़रूरी इंतजामात नहीं हैं,इसे जल्दी से जल्दी मुज्ज़फ्फर नगर जिला हस्पताल में पहुंचाना होगा.अगर जल्दी से चल पड़ें तो आधे घंटे के अन्दर ही हस्पताल पहुँच जायेंगे.
सैय्यद साहब का ड्राइवर नजीर अपने परिवार सहित साथ वाले खंडहर में रहता था, जहां वो घोड़े बेचकर सोया पडा था.गोली चलने की आवाज़ ने भी खंडहर की शान्ति भंग नहीं की थी.
परन्तु शर्फु ने जब नजीर को सोते से जगा कर सारा मामला समझाया तो वो बिना वक़्त गंवाए, हडबडाता हुआ बिस्तर से उठा, मुंह पर पानी के छींटे मारे और बिस्तर के सिरहाने रखी अपनी कमीज़ उठा कर तहमद में ही गैरेज की तरफ भागा.
लट्टू सिंह बैजनाथ जी के साथ मुज्ज़फ्फर नगर जाना चाहता था,लेकिन दरोगा जी ने उसे साथ जाने की इजाज़त नहीं दी.दरोगा जी को उसका बयान भी तो लेना था.
डा.जैन का अंदाजा था कि रात के इस वक़्त चौदह की. मी. के इस सफ़र में तकरीबन आधा घंटा लग ही जाएगा,पर वाह रे नजीर,उसने जी.टी.रोड पर नयी एम्बेसडर कार ऐसे भगाई कि डाक्टर साहब अगला सांस बीस मिनट बाद हस्पताल में गाडी से उतर कर ही ले पाए.
सर्दी की उस हड्डियां गला देने वाली रात में सारा प्रबंध कराने के लिए डा. जैन को थोड़ी भाग-दौड़ तो करनी पड़ी परन्तु उसके बाद बैजनाथ जी का इलाज सुचारू रूप से प्रारम्भ हो गया.
बैजनाथ जी का इलाज शुरू हो जाने के बाद पूरी तरह से संतुष्ट होकर डा. जैन जब वापिस खतौली पहुंचे तो चार बजने को थे,भोर होने में अभी तीन घंटे बाक़ी थे.अतः सैय्यद साहब को सारी स्थिति समझा कर डा. जैन भी अपने घर लौट गए.
हवेली के बाहर गली में लोगों का मेला सा जुड़ गया था.गली में ज़मीन पर अपने ज़माने के मशहूर और खूंखार इनामी डकैत नियादर और उसके तीन साथियों की लाशें पड़ी थीं. एक सिपाही लोगों को लाशों से बार-बार दूर हटा रहा था.
अन्दर दालान में एक साफ़-सुथरी चादर में लपेट कर बब्बन का शव रखा गया था ,सिराहने लोबान का धूंआ उठ रहा था और इतनी अल-सुबह मस्जिद से मौलवी साहब भी आने वाले थे.
अन्दर ज़नाने में दोनों बच्चों को नींद का इंजेक्शन देकर डा.भगत राम जा चुके थे .
दरोगा जी ने सब से पहले सैय्यद साहब और उनके परिवार वालों के बयान लिए.फिर शर्फु का नंबर आया.उसके बाद उन्होंने लट्टू सिंह को अपने पास बुलाकर सारी बातें पूछीं .
एक बजे के गए लट्टू सिंह चार बजे से थोड़ा ही पहले घर पहुँच पाए.परन्तु उनके घर पहुँचने से पहले ही उनकी यश-गाथा उनके घर पहुँच चुकी थी.
उनके प्रेम और लाड से भरी उनकी पत्नी ने लाख कहा कि सारी रात के जागे हो थोड़ा आराम कर लो. परन्तु लट्टू सिंह की आँखों के आगे रह-रह कर बैजनाथ जी का लहुलुहान चेहरा घूम रहा था इसीलिए वो सब गौओं को दुह कर ,सब जगह दूध बाँट कर जल्दी से जल्दी मुज्ज़फ्फर नगर हस्पताल में पहुँच जाना चाहता था.
(अभी शायद इतना ही काफी होगा,बाकी ब्रेक के बाद.तो फिर राम-राम जी )