Saturday, January 8, 2011

बैजनाथ - 1

यह सारा किस्सा सन 1955 और 1957 के बीच का है.मेरी 14 से  16 बरस कि उम्र  के बीच का.

हम लोग उन दिनों खतौली में रहते थे. वैसे खतौली  में हम लोग 1961                तक रहे थे जबकि 1957 में मैंने वहाँ से हाई स्कूल पास किया था.उन दिनों  यह एक छोटा सा और शांत  कस्बा होता था,आज तो इसका बहुत विस्तार हो गया है.

मेरी कथा का नायक बैजनाथ एक गर्मियों की शाम अचानक ही खतौली में आ पहुंचा था. उस दिन भी और दिनों की तरह   मैं और मेरे कुछ  साथी  शाम के वक़्त  मंदिर के अहाते में चबूतरे पर बैठे आपस में बातचीत और  हंसी-मज़ाक कर रहे थे जब श्री बैजनाथ का आगमन वहाँ हुआ. उस वक़्त मैं  सीता  शरण कालेज में नौवीं क्लास में पढ़ता था. हम लोगों में से किसी ने भी उन के वहाँ आगमन पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया ,क्योंकि मंदिर से जुड़ी धर्मशाला में अक्सर कोई न कोई मुसाफिर या सेल्जमैन आता  ही रहता था और कुछ दिन में अपना काम निपटा कर वापिस  भी चला जाता था. बैजनाथ ने अपना हाथ में थामा हुआ जूट का थैला धर्मशाला के बरामदे में दीवार के साथ टिकाया और हाथ मुंह धोने के लिए मंदिर के कुएं की ऑर चला गया. कुआं मंदिर के अहाते में ही मंदिर के सामने दाईं ऑर पर था.कूएँ की पक्की जगत पर कुएँ से पानी खींचने के लिए  रस्सी और उस से बंधी एक बाल्टी हमेशा रखी रहती थी . इस कूएँ का पानी बहुत ठंडा और मीठा था और इसीलिये मंदिर का यह कुआं  ठन्डे कूएँ के नाम से मशहूर  भी था.क्या हिन्दू क्या मुसलमान सभी इस के शीतल  जल से तृप्ति महसूस करते  थे.

 बैजनाथ ने कुएं पर लगी चरखी पर  रस्सी चढ़ाई और बाल्टी कुएं में छोड़ दी.एक छपाक की आवाज़ के साथ बाल्टी पानी से टकराई और गुडुप करके पानी में डूब गयी . बाल्टी का पानी की सतह से टकराना फिर पानी में डूबना और फिर पानी से भरकर पानी से बाहर आना ,विशेष प्रकार की आवाजें पैदा करता है.जिन्होंने रस्सी और बाल्टी से कुएं से पानी खींचा है वह इस अनुभव से  अच्छी तरह से परिचित हैं . बैजनाथ हाथ मुंह धो अपने अंगोछे से मुंह पोंछते हुए हम लोगों तक आया और बोला " राम -राम जवानों ,बता सकते हो ,पंडित जी कहाँ मिलेंगे".हम लोगों को जवानों के नाम से पहली बार किसी ने पुकारा था इसलिए हम सब खुश होकर एक साथ बोल उठे क़ि पंडित जी अन्दर हैं.बैजनाथ ने सबसे आगे और उनके पास खड़े घनश्याम भाई के सर पर बड़े प्यार से अपना हाथ फिराया और  फिर अंग्रेजी में बोले, "वैरी गुड , थैंक यू "और वहीं चौंतरे के पास अपनी चप्पलें उतार कर हाथ जोड़ते हुए मंदिर में घुस गए.हम सब के लिए उनका यूं अंग्रेजी के शब्द बोलना ,दूसरा झटका था. खतौली में उन दिनों हमारे अंग्रेजी के अध्यापक तक हम लोगों से सिर्फ हिंदी में ही बातचीत किया करते थे .अंग्रेजी बस उतनी ही बोलते जितनी क्लास में जरूरी हो.बैजनाथ जी का हमें जवानों कहना ,घनश्याम भाई के सर पे प्यार से हाथ फिराना और फिर अंग्रेजी के शब्द बोलना हम सब को  न सिर्फ चौंका गया बल्कि खुश  भी कर गया और हम सब उनका बाहर आने का इंतज़ार करने लगे.

मंदिर की धरमशाला  में आने और वहाँ से वापिस जाने वाले सब लोगों का पूरा ब्योरा पंडित जी अपने एक रजिस्टर में नोट कर के अपने पास रखते थे.बैजनाथ जी रजिस्टर की खानापुरी पूरी करके बाहर आये और हम सब के पास वहीं  चबूतरे पर आकर बैठ गए. न जाने उन के व्यक्तित्व में ऐसा  कैसा आकर्षण था की हम सब उन के चारों ऑर जुड़ कर आन बैठे . 

बैजनाथ जी ने जैसे हमें  सभी को सम्बोधित करते हुए कहा,"मेरा नाम बैजनाथ है और यहाँ कुछ काम काज की  तलाश में  आया हूँ ,और अब  अगर आप लोग भी अपना अपना परिचय दें तो बढिया रहे." हम सब ने अपने अपने नाम बताये तो बैजनाथ जी बोले,"शाम को इस वक़्त आप सब यहाँ बैठे गप्पें मार रहे हैं ,क्या इस समय आप लोग कहीं कुछ खेलने के लिए नहीं जाते''? इस पर घनश्याम भाई बोले क़ि वैसे तो रोजाना छुट्टी होने के बाद हम लोग  कालेज में ही फुटबाल या हाकि जो चाहें खेलते हैं पर आजकल कालेज की छुट्टियां  होने के कारण यहीं बैठे हैं.

 इतने में पंडित जी मंदिर से बाहर आ गए और बैजनाथ जी की ऑर मुंह करके बोले,''भाई बैजनाथ,यह खतौली तो एक छोटा सा कस्बा है,यहाँ कहाँ काम-काज धरा है ,यहाँ से तो खुद लड़के लोग बाहर जा कर काम ढूंढते  फिरते हैं''.

बैजनाथ जी बोले,''पंडित जी,मुझे कौनसी लम्बी चौड़ी कमाइयां करनी  हैं ,दो वक़्त की रोटी का इंतजाम हो जाय ,अपने को वही बहुत है ''.
इतने में चौबे जी वहाँ आन पहुंचे.चौबे जी की खतौली में मिठाई की दुकान थी .उनका मिठाई  का  अच्छा खासा काम था. दुकान के अलावा उनका एक आदमी बस अड्डे पर और एक आदमी रेलवे स्टेशन पर भी एक टोकरी में भर कर बेसन के लड्डू बेचा करता था. बाकी की  दूसरी मिठाइयों के साथ-साथ उनकी दुकान के बेसन के लड्डू   बहुत मशहूर थे. वैसे हमारे सीता शरण कालेज में चौबे जी की एक केन्टीन भी थी.कालेज में केन्टीन तो चौबे जी  सिर्फ अपना मन खुश करने के लिए चला रहे थे, क्योंकि बच्चों के बीच रहना उन्हें बहुत पसन्द था और इसीलिये कालेज की केन्टीन में सब चीज़ें बाकी जगहों के मुकाबले काफी कम दामों पर मिलती थीं. चौबे जी बच्चों को इतना चाहते थे की शहर की मिठाइयों की दुकान अपने भाई के भरोसे छोड़ कर कालेज के पूरा टाइम केन्टीन में ही रहते थे. कालेज में केन्टीन के साथ-साथ चौबे जी  के पास साइकल स्टैंड का भी ठेका था. 

चौबे जी को जब बैजनाथ जी के बारे में मालूम पड़ा तो वो बोले,'पंडित जी , आपको याद होगा, मैंने आपको बताया था कि कालेज खुलने पर साइकिल स्टैंड संभालने के लिए मुझे एक समझदार आदमी  की ज़रुरत पड़ेगी  और अभी भी मुझे स्टैंड संभालने के लिए आदमी की  ज़रुरत है.

यह सुनकर बैजनाथ जी बहुत खुश हुए और चौबे जी से बोले,''लाला जी , मैं यहाँ बिलकुल ही नया हूँ इसलिए यहाँ मुझे कोई जानता भी नहीं कि मैं किसी की ज़मानत दिला सकूं,पर मैं आपको  इतना  ज़रूर कहना चाहता हूँ कि  यदि आपने मुझे अपनी सेवा का मौका दिया तो मैं अपना काम हमेशा पूरी ईमानदारी से करूंगा .

बैजनाथ जी की बात सुन कर चौबे जी हंसने लगे और बोले ,''भैया, मैं कोई लालाजी वालाजी नहीं हूँ ,छोटा कद और मोटा होने की वजह से इस  गोल-मटोल बन्दे को तुम लालाजी समझ बैठे हो जबकि असलियत में मुझे सब चौबे जी के नाम से जानते हैं और तुम भी मुझे इसी नाम से बुला सकते हो.

बैजनाथ जी बोले ,''गलती की माफ़ी चाहता हूँ चौबे जी और आपसे फिर प्रार्थना करता हूँ कि मुझे सेवा का मौका जरूर दें, आपकी  बड़ी मेहरबानी होगी .

यह सारी बातें सुनकर पंडित जी बोल उठे ,''चौबे जी,वैसे तो इस लड़के को मैं सिर्फ आधे घन्टे से ही जानता हूँ पर न जाने क्यों मुझे ऐसा लगता है कि यह कम से कम ईमानदार ज़रूर है''.

चौबे जी बोले,''पंडित जी,आपका तजुर्बा बहुत बड़ा है और जब आपको ही लड़का जंच रहा है तो मैं इस को कैसे  नकार सकता हूँ ''.

फिर चौबे जी बैजनाथ जी से बोले,''वैसे भैया इतनी बातें हो गयीं पर तुमने अपने बारे में तो कुछ बताया ही नहीं. कौन हो ?कहाँ से आये हो? घर-बार छोड़ कर नौकरी करने कि ज़रुरत क्यों आन पड़ी? ''

इतने सारे सवाल एक साथ सुनकर बैजनाथ जी सकपका से गए पर फिर संभलकर बोले,''चौबे जी अब तो मेरा परिचय सिर्फ यही है कि मैं आपका नौकर हूँ वैसे मैं हापुड़ के पास गुलावटी कस्बा है वहीं का रहने  वाला हूँ,घर के हालात  ही कुछ ऐसे बन गए कि मुझे रोज़ी-रोटी कि तलाश में बाहर निकलना पड़ा. प्रभु की कृपा से आपने सहारा दिया है तो यही कह सकता हूँ कि आपको कभी कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगा, बाकी बातें साथ रहते रहते धीरे-धीरे आप सब  जान ही जायेंगे.''
चौबे जी  हलके से मुस्कुराए और फिर बोले ,''ठीक है, बाकी की बातें बाद में होती रहेंगी ,अब ध्यान से सुन लो कि मैं तुम्हें पैंतीस रुपये महीना दूंगा और दोपहर को रोजाना  केन्टीन से एक वक़्त चाय,मंजूर है तो  पंडित जी के सामने हाँ बोलो ,क्योंकि   वैसे तो  कालेज खुलने में अभी दस दिन बाकी हैं पर स्टैंड पर मरम्मत का काफी काम होना है इसलिए  मैं चाहता हूँ  कि जल्दी से जल्दी मजदूर लगवा कर  मरम्मत का काम कालेज खुलने तक पूरा करवा दूं ,तो अब अगर तुम्हारी हाँ है तो कल सुबह 8  बजे कालेज चलने के लिए तैयार मिलना मैं सुबह मंदिर में दर्शन करने आऊँगा तो इधर से ही तुम्हे लेकर कालेज कि तरफ चला चलूँगा ताकि एक बार तुम्हें सारा काम समझा दूं फिर बाद में तो तुम खुद ही सब कुछ आराम से कर ही लोगे.''

यह सुन कर बैजनाथ जी ने मंदिर कि तरफ मुड़ कर हाथ जोड़ कर प्रणाम किया और बोले ,''मैं आप दोनों का बहुत आभारी हूँ कि आप लोगों ने मुझे इस काबिल समझा पर  सच कहूं तो मैं अभी भी यकीन  नहीं कर पा रहा हूँ कि यहाँ पहुंचे मुझे अभी एक घंटा भी नहीं हुआ कि मेरे सारे काम अपने आप इतनी आसानी से हो भी गए. इसे  प्रभु का  चमत्कार नहीं तो और क्या समझूं''.

इतना बोल कर बैजनाथ जी  चौबे जी के आगे हाथ जोड़े खड़े रह गए.
मज़े कि बात यह है कि काम तो मिला बैजनाथ जी को पर खुश हम सब लड़के लोग हो रहे थे जैसे हमारा ही कोई बहुत बड़ा काम सिद्ध हो गया हो.

उस दिन से आने वाले दो सालों में खतौली के लड़के लोगों का एक बहुत बड़ा ग्रुप उनका मुरीद हो गया था.

पर अचानक एक दिन सुबह हाहाकार ही तो मच गया जब उनके कमरे में से उनकी लाश बरामद हुई.  



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