Thursday, January 13, 2011

बैजनाथ --2


बैजनाथ का खून कैसे हुआ ? क्यूं हुआ? किसने   किया या करवाया ? वगैरा बहुत से सवाल हैं जो जवाब मांगते हैं,और जब तक वाजिब जवाब न मिल जाए जवाब मांगते ही रहेंगे. उस वक़्त  भी इन सवालों ने बहुत दिनों तक खतौली के लोगों को परेशान किये रखा था. अब जब सवाल हैं तो उनके जवाब भी होने लाज़मी हैं और इन सवालों के जवाब भी थे जो देर-सवेर सामने आने ही थे और आये भी सही, चाहे देर से आये पर आये. 
उन जवाबों की कहानी मैं  बाद में  बताऊंगा ,क्योंकि उस से पहले और बहुत सी बातें हैं जो मैं कहना चाहता हूँ ,हालांकि उन  सवालों के जवाब भी कोई कम दिलचस्प नहीं हैं . 
बैजनाथ  मेरी किशोरावस्था के समय का  मेरा परम प्रिय एवम जीवन्त हीरो रहा है.मैं और मेरे दूसरे यार दोस्त उसके एक इशारे पर कुछ भी करने को सदा तत्पर रहते थे. वो था ही ऐसा शानदार बन्दा कि जो उस से एक बार मिल-जुल लेता था सदा के लिए उसी का होकर रह जाता था .
शेक्सपियर कि यह उक्ति उस पर बड़ी सटीक बैठती है  - वह आया , उसने देखा और उसने जीत लिया.
रंग चाहे उसका सांवला ही था पर उसमें एक कशिश थी, चेहरा गोल था जो प्यार और ममता से भरा नज़र  आता था.उसकी बड़ी बड़ी काली और चमकीली आँखें जिधर घूम जाएं बाँध कर रख लेती थीं .चौड़ा माथा और उस पर काले घने घुंघराले  बाल उस के सर पर एक ताज की तरह सजते थे . कद उसका दरम्याना था पर  शरीर गंठा हुआ था, और चाल, सच कहता हूँ , हम सब लड़के उनकी मस्ती भरी चाल की नक़ल करने की कोशिश किया करते थे.
हम सब उसके भक्त भी थे और चेले भी.वह हम लड़कों का बॉडी बिल्डिंग का उस्ताद था पर हम सब उसे बड़े भाई के नाम से बुलाते थे . जैसा कि मैं पहले पार्ट में ही बता आया हूँ कि रोज़ी रोटी कमाने के लिए बड़े भाई शहर के  सीता शरण कोलेज में मामूली साइकिल स्टैंड अटेंडेंट के रूप में काम किया करते थे  . करीब छः माह  बड़े भाई ने साइकिल स्टैंड पर  अटेंडेंट के पद पर काम किया पर फिर उन्हें वोह काम छोड़ना पड़ा.यह नौकरी उन्हें मेरे  ही कारण छोडनी पड़ी थी . अब फिर गड़बड़ वाली  बात हो रही है , अभी नौकरी शुरू हुई नहीं कि ख़त्म होने की बात भी होने लगी . तो वो सब बातें बाद में  वक़्त आने पर  करूंगा.

हमारा कालेज कोएड  कालेज था . उसी हिसाब से साइकल स्टेंड की व्यवस्था भी थी. उसी साइकल  स्टैंड में शुरू में ही एक छोटा हिस्सा लड़किओं के लिए अलग से सुरख्यित था. फिर भी लड़किओं को साइकल खड़ी करने और वहाँ से निकालने में बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता था.ज्यादातर दिक्क़तें लड़कों की वज़ह से ही होती थीं.लड़के बड़ी मासूमी से लड़किओं की साइकिल के आगे अपनी साइकिल  जान-बूझकर ऐसे अड़ा देते थे कि जैसे गलती से फंस गयी हो,  और लड़किओं  को साइकिल निकालने में बड़ी परेशानी होती थी तब वो शैतान  लोग लड़कियों की परेशानी का मज़ा लेते थे.

बैजनाथ जी ने पहले दिन ही जब लड़किओं की परेशानी का नज़ारा देखा तो उन्होंने व्यवस्था में अपनी तरफ से ही एक बिलकुल नया फैसला लेकर काम शुरू कर दिया. 
अगले दिन जब बच्चे कालेज पहुंचे तो नज़ारा बदला हुआ था. बैजनाथ जी ने लड़किओं से कहा कि वह लोग अपनी-अपनी साइकलें स्टैंड के बाहर ही एक तरफ खड़ी कर दें और टोकन लेकर  अपनी-अपनी क्लास में  चली   जाएँ ,उनकी साइकलों को बाद में वह खुद ही  स्टैंड के अन्दर लगा देंगे और साथ ही उन्होंने लड़किओं से यह भी कहा कि शाम को कालेज से वापसी पर भी उन लोगों को स्टैंड के अन्दर आने कि ज़रुरत नहीं है, जो भी लड़की आये वो बाहर से  ही बैजनाथ जी को अपना टोकन पकड़ा दे बैजनाथ जी खुद उसकी साइकिल निकाल कर बाहर ले आयेंगे और लड़की को बिना किसी परेशानी के साइकिल पकड़ा देंगे.
हालांकि बात बहुत ही मामूली सी है पर इस से कालेज में तो जैसे तूफ़ान ही आ गया. जहां शैतान लड़के मन मसोस कर रह गए वहीं  लडकियां बहुत खुश हो गईं.हाँ दो-एक लडकियां जो इस छेड़खानी से मन ही मन खुश होतीं थीं वो ज़रूर मायूस हुई होंगी.
जब कालेज में बैजनाथ जी द्वारा किये गए इस इंतज़ाम कि खूब तारीफ़ होने  लगी तो चौबे जी भी बहुत खुश  हुए और उन्होंने सबके सामने बैजनाथ जी की खूब बढ़-चढ़कर तारीफ़ की. धीरे-धेरे यह छोटी सी बात खतौली शहर में भी चर्चा का विषय बनी और  साथ ही खतौली में उनका सन्मान बढ़ाने वाली  भी बनी.
खतौली ,जैसा कि मैंने पहले ही कहा है , उन दिनों एक छोटा सा ही कस्बा था जहां हर बात सब लोगों में बहुत जल्दी चर्चा का विषय बन जाती थी.
उन दिनों टी. वी. जैसी तो कोई वाहियात चीज़   थी नहीं , लोग-बाग़ रेडिओ सीलोन पर फ़िल्मी गाने सुनकर और हर बुधवार को बिनाका गीत माला सुन-सुन कर अपना दिल बहलाया करते थे. श्री अमीन शयानी बिनाका गीत माला प्रस्तुत किया करते थे. आज-कल जैसे टी. वी. के सीरियल्ज़ की चर्चा होती है, वैसे ही उन दिनों बिनाका गीत माला चर्चा का विषय रहती थी,कौनसा गाना पहले पायेदान पर आया और कौन सा बाद के, यह चर्चा,खूब ज़ोरों से होती थी.  श्री सुनील दत्त , बलराज के नाम से फ़िल्मी गानों का प्रोग्राम पेश किया करते थे जो बड़ी दिलचस्पी से सुना जाता  था , सुनील दत्त  जी बाद में रेडियो सीलोन छोड़कर फिल्म इण्डस्ट्री में आये.  उनदिनों  तो अभी  विविध भारती भी शुरू नहीं हुआ था  केवल रेडियो सीलोन ही एक रेडियो स्टेशन था जिसे सुनकर सब खुश हो लिया करते थे.
 अगर कहीं से कोई  नया किस्सा छेड़ दिया जाता तो थोड़े  ही दिनों में अफ़साना बनकर गलियों-गलियों होता हुआ घर-घर में पहुँच जाता और असलियत खुल जाने पर,जो कि बहुत जल्दि  खुल भी जाया करती थी ,किस्सा छेड़ने वाले की खूब किरकिरी भी होती थी. 
  साइकिल स्टैंड वाला मामला बड़े भाई का पहला कारनामा था जिसने उनकी एक अलग  ही पहचान बना दी थी. तो उसकी  चर्चा  ना होती ,ऐसा कैसे हो सकता था. सो चर्चा हुई और खूब हुई.

उसके बाद की बात यह है कि,
कालेज में  एक छोटा सा अखाड़ा भी था जहां जब मैच आदि होने होते थे तब  लड़के प्रैक्टिस किया करते थे. पहले कभी  शायद कोई प्रोपर कोच आता रहा होगा जिसने यह अखाड़ा बनवाया होगा ताकि जिन  लड़कों को  रूचि हो उन्हें ठीक से तैयार किया जा सके. पर अब लड़के खुद ही अखाड़े में जोर- अजमाइश किया करते थे हाँ कभी-कभी  कालेज के पी.टी. आई. साहेब कोचिंग के नाम पर उन लोगों को कुछ छोटी-मोटी  बात बता देते थे.पर  हमारे कालेज के लड़के कुश्ती में  कभी कोई इनाम वगैराह नहीं जीत पाते थे.
एक दिन बड़े भाई ने पी. टी. आई. साहेब से पूछा कि यदि उन्हें ऐतराज़ न हो तो वह भी लड़कों के साथ थोड़ा जोर-आज़माइश कर लिया करें . किसी को भी कोई ऐतराज़ क्यों होना था. और इस तरह बड़े भाई कालेज के अखाड़े में भी घुस गए. 
थोड़े ही दिनों में धीरे-धीरे अखाड़े की तो  जैसे हवा ही बदल गयी. जहां पहले सिर्फ दो या तीन  ही लड़के अखाड़े में दांव - पेंच खेलते नज़र आते थे वहीं अब अखाड़े पर अच्छी -खासी भीड़ नज़र आने लग गयी. बड़े भाई खुद लंगोट बाँध कर लड़कों के साथ अखाड़े  में उतारते और उन्हें नए से नए गुर सिखाते. अखाड़े पर भी बाकी खेल के मैदानों की तरह खूब हो हल्ला और हंगामा होने  लगा. 
जब जिला स्तर पर खेलों का आयोजन हुआ तो पहली बार हमारे कालेज के लड़कों ने इनाम जीते और कोई एक आध इनाम नहीं,बल्कि अलग -अलग केटेगरीज़ में कुल मिला कर बारह  मैडल हमारे कालेज के लड़के जीत कर लाये. यह अपने आप में एक रिकार्ड ही था.कालेज में ही क्या पूरे खतौली कस्बे में बैजनाथ जी के नाम का डंका बजने लगा. उसके बाद कमिशनरी लैवल पर भी तीन लड़के गोल्ड मैडल जीत कर आये. 
पहले साइकिल स्टैंड वाला किस्सा और फिर कालेज के लडकों का पहली बार मैडल जीतना अपने आप में बैजनाथ जी के लिए बहुत अधिक लाभदायक सिद्ध हुए . 
एक बार रविवार के  दिन जब बड़े भाई मन्दिर के आहते में चबूतरे पर बैठे थे तब पण्डित जी उनके पास आये और बोले,'' भाई बैजनाथ, तूने कालेज के छोरों को  तो असली पहलवान बना दिया, बड़ा भला काम किया, पर भाई खतौली कस्बे के छोकरों के लिए भी तो कुछ सोच ,ये सुसरे इधर से उधर फ़िज़ूल में  डोलते फिरते हैं  ना कोई काम ना काज बस  सिर्फ आवारागर्दी.
बड़े भाई ने पण्डित जी के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा ,'' पण्डित जी ,मैं  किस लायक हूँ ,यह तो प्रभू कि इच्छा और आप बड़ों का आशीर्वाद है कि मुझे आप लोगों का प्यार मिल रहा है. फिर भी आप हुकम करें कि आप  के मन में क्या है , मैं  तो आप का  बच्चा हूँ , जैसी आप कि आज्ञा होगी ज़रूर पूरी करने कि कोशिश करूंगा ''.
बैजनाथ जी का जवाब सुनकर पण्डित जी बहुत खुश हुएऔर बोले ,'' सुन भाई , मेरे से शहर के कुछ लाला लोगों ने बात की है,और उन लोगों की यह इच्छा है कि तेरे से पूछा जाए और यदि तू माने तो मन्दिर के आहते  में कुएँ के साथ वाली जगह पर एक अखाड़ा शुरू कर दिया जाए,जहां शहर के लड़के आकर तेरी शागिर्दी में  कुश्ती के कुछ दांव पेंच सीखें और अपनी सेहत  का  भी ठीक से ख्याल रखना सीख  सकें.

यहाँ मैं एक बात बता दूं कि उन दिनों में कबड्डी और कुश्ती का सब लोगों को बहुत शौक हुआ करता था.क्या नौकरी पेशा क्या व्यापारी सब कुश्ती के  दंगल देखने पहुंचे खड़े होते थे.
बैजनाथ जी : पण्डित जी, यह तो  बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी  का काम है,  मैं कैसे कर  पाऊंगा ?
पण्डित जी: तू क्या कर सकेगा क्या नहीं यह तो  तू हमारे पर छोड़ दे  भैया , कौन कितने पानी में है यह हम  अच्छी तरह  से जानते हैं. तू तो इधर-उधर कि बातें छोड़ और मुझे सीधे-सीधे अपने मन कि कह.
बैजनाथ: डरता हूँ कि कहीं छोटे मुंह बड़ी बात ना हो जाए.
प.जी:अरे जब कह रहा हूँ कि सब साफ़-साफ़ बोल तो क्यों फालतू में इधर-उधर कि हांक रहा है.
बैजनाथ जी बड़े संकोच से हाथ जोड़ते हुए बोले,'' पण्डित जी , आप तो अच्छी  तरह से जानते हो कि अखाड़े में बहुत सख्त अनुशासन बनाए रखना होता है ,वहाँ एक तरफ रईसों के बच्चे आते हैं तो दूसरी तरफ मामूली हैसियत के परिवारों के बच्चे भी आते हैं. अपनी-अपनी कद -काठी और मेहनत के बल पर बच्चे का जिस्म उभरता है  और जो जितना अभ्यास और मेहनत करता है वह अखाड़े में उतनी ही कामयाबी पाता है,पर बच्चे इस बात को नहीं समझते , उनका तरुण मन पिछड़ जाने पर  भड़क उठता है. उस वक़्त बच्चों को काबू में रखना आप  अच्छी तरह से जानते हो कि कितना मुश्किल काम है. आगे  निकलते बच्चे का बिना घमण्ड बढ़ने दिए हौसला बढ़ाना, उसे खूब शाबासी देना  जहां उस्ताद का काम है वहीं पिछड़ते बच्चे का मनोबल बनाए रखना और उसे निराशा से बचाए रखना भी उस्ताद के लिए बहुत अहम् ज़िम्मेदारी का काम होता है ''.
प्.जी : तो इसमें परेशानी कि कौनसी बात है ?
बै.ना.: परेशानी तब होती है जब बच्चे अखाड़े कि खुन्दक अखाड़े के बाहर जाकर निकालने की कोशिशें करते हैं, उस वक़्त  कई बार उस्ताद को  बच्चों की भलाई के लिए सख्त कदम भी उठाने पड़ते हैं.और हो सकता है कि वो सख्ती बच्चों के साथ ही साथ उनके मां-बाप को भी पसन्द ना आये,खासकर रईस लोगों को.
बड़े भाई की यह बात सुनकर पण्डित जी कुछ देर के लिए चुप हो गएऔर फिर जैसे कुछ सोच कर बोले,''बात तो तेरी बहुत सही है बेटा  और गम्भीर भी पर  जब इस  काम  को करना ही  है तो इस का कोई ना कोई हल तो ज़रूर तेरे दिमाग  में भी होगा ,लगे हाथ वो भी बता दे,फिर फैसला करते हैं कि क्या करना है और कैसे करना है''.
बै. ना.:पण्डित जी, लड़कों का स्वभाव तो आप मेरे से खूब ज़्यादा अच्छी  तरह से  जानते हैं और फिर जब चार दिन  अखाड़े में भी उतर लेते हैं तो अपने को भीमसेन से कम नहीं समझते इसलिए कब  और कैसे इन लोगों को काबू में किया जाए यह  तो परिस्तिथि के हिसाब से ही फैसला लेना पड़ता है ना.और फिर किसी के भी हों,  उस्ताद के लिए तो सारे  बच्चे बराबर ही होते हैं और दुश्मनी तो किसी से भी नहीं होती ''.
प. जी.: समझ गया तेरा मतलब, बेटा ,जहां तक मैं तेरी बात समझा हूँ ,तेरा मतलब ये है कि बच्चों कि भलाई के लिए अनुशासन ज़रूरी है,और  उसके लिए अखाड़े  के अन्दर या अखाड़े के बाहर जहां भी ज़रुरत पड़े तुझे बच्चों के साथ सख्ती से भी पेश आना पड़ सकता है,और उस वक़्त अगर बच्चों के मां-बाप ने  अपने बच्चे कि तरफदारी करते हुए कोई हरकत की तो लाभ कि जगह नुक्सान ज़्यादा होने का ख़तरा है,जिस से तू बचना चाहता है.
क्यों ,यही बात है ना ?  ----------------

अखाड़ा शुरू हुआ या नहीं हुआ और  आगे बैजनाथ जी ने क्या किया ?

यह सब अगली किश्त यानी बैजनाथ---३ में पढियेगा.
 तब तक के लिए सायोनारा.

2 comments:

  1. Papa amazing storytelling ....I m hooked....can't wait for part 3...kanika bhe bahut bechain hai aage ke kahani ke liye.

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  2. koshish kar rahaa hoon ki jaldi se sab pooraa kar loon. ab jyaadaa der naheen lagegi.

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