Sunday, March 6, 2011

बैजनाथ - 9


बैजनाथ जी ने ज़्यादा बात करना ठीक नहीं समझा और सैय्यद साहब को खामोशी से अपने पीछे -पीछे आने को कहा.

दोनों आगे-पीछे दबे पाँव दालान में दाखिल हुए और सामने बरामदे की तरफ बढे.बरामदे में पहुँच कर बैजनाथ जी ने सैय्यद साहब को रुकने का इशारा किया और खुद दायीं ओर वाले कमरे की दीवार के साथ लगे-लगे कमरे के दरवाज़े की तरफ सरकने लगे.
सामने सैय्यद साहब की अम्मी जान के कमरे का दरवाज़ा बाहर से कुण्डी लगा कर बंद किया हुआ था.अन्दर अम्मी जान और उनकी खिदमतगार शाफ्फो बुआ नजाने किस हालत में थीं .जो भी हो हालात को देखते हुए बैजनाथ जी ने पहले बड़े हाल कमरे की खबर लेना बेहतर समझा.
बड़े हाल कमरे के दरवाज़े के पास पहुंच कर उन्होंने बहुत आहिस्ता से एक बार गर्दन आगे बढ़ाकर अन्दर झांका,अन्दर का नज़ारा देख कर एक पल को तो बैजनाथ जी जैसे सुन्न ही हो गए.पर  फिर उन्होंने अपने आप को संभाला और गर्दन पीछे करके सीधे खड़े हो गए.अन्दर का नज़ारा देख कर उन्हें अपने ऊपर नियन्त्रण रखना बहुत मुश्किल हो रहा था,  तेज़  सांस के कारण उनकी छाती धौंकनी की तरह उठ-बैठ रही थी और आँखें मारे क्रोध के जल कर लाल हो गईं थी.

बैजनाथ जी की यह दशा देखकर सैय्यद साहब भी डर गए और सरक कर उनके पास आन खड़े हुए.बैजनाथ जी बिना आवाज़ किये लम्बी-लम्बी सांसें भरते हुए अपने आप पर काबू पाने की कोशिश कर रहे थे.कमरे के अन्दर का नज़ारा उन की आँखों के आगे रह-रह कर कौंध रहा था. 

अन्दर हाल कमरे के बींचो-बीच छत के एक हुक से दो बच्चे उलटे  लटके हुए थे .ये दोनों शायद सैय्यद साहब की बेटी की औलादें थीं.बच्चे ज़िंदा भी थे या नहीं, बाहर से जानना मुश्किल था,पर एक बात पक्की थी कि  बच्चे यदि अभी ज़िंदा भी थे तो बेहोश ही थे,बाहर से तो कम से कम ऐसा ही नज़र आ रहा था.कमरे के आखिर में दो बड़े-बड़े पलंगों पर सैय्यद साहब की बेगमऔर उनकी दोनों बेटियाँ पेट के बल  बंधे हुए पड़े थे.पलंगों के साथ ही एक बड़ी खाट पर शमसू का बड़ा भाई फैज़ उलटा बंधा हुआ पडा था.उसके होठों से बह कर खून बिस्तर की चादर पर जमा हो कर सूख गया था, उसके चेहरे पर शायद काफी जोर की चोट मारी गयी थी जिसके कारण उसके होंठ फट गए थे और वो अभी तक बेहोश पडा था.  

सैय्यद साहब की बेटी और दामाद पलंगों के पाँव की तरफ दीवार के साथ लड़कियों की स्टडी कुर्सियों से ऐसे जकड कर बांधे गए  थे कि वो ज़रा भी हिलडुल नहीं सकते थेऔर मुंह पर बंधी पट्टी की वज़ह से मुंह से कोई आवाज़ भी नहीं निकाल सकते थे.

स्टडी टेबल और दोनों कुर्सियों के साथ दीवार से लगा एक दीवान पड़ा था जिस पर एक और जवान लड़की बंधी हुई पड़ी थी,ये शायद करीमन थी.

इन सब के अलावा अन्दर हाल कमरे में बैजनाथ जी को सिर्फ एक आदमी और दिखाई दिया था जो अपने चारों ओर  से बेखबर करीमन की चोली खोलने जैसे शैतानी काम में लगा हुआ था,जिसमें बंधे पड़े होने के बावजूद करीमन, बहुत ज़्यादा हिलडुल कर, उसे सफल नहीं होने देना चाहती थी,ऐसी हालत में मजबूर लड़की उसे कितनी देर रोक पाएगी,बैजनाथ जी ने सोचा.
और फिर उन्होने अपना मुंह अपने पास आन खडे हुये सैय्यद साहब के कान से साटाया  और उनके कान में फुसफुसाए,'' मेरे बुलाने पर अन्दर आ जाइयेगा.''
और खुद पंजों के बल घात लगाते हुए कमरे में  दिवार के साथ लगे   दीवान की तरफ बढे जहां वो  बदमाश करीमन की चोळी फाडकर  अपने चारों तरफ से बेखबर उस की छातियों में मुंह गडाए उस से ज़बरदस्ती करने की कोशिश में  मशगूल था.लड़की के हाथ-पैर और मुंह बंधे हुए थे,फिर भी हिल-डुल कर वो उससे बचने की अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही थी.

बैजनाथ जी बिना कोई आवाज़ किये उसके पास तक जा  पहुंचे और उन्होंने अपना दायाँ हाथ बढ़ाकर उसके सर के बाल पकडे और एक झटके से पीछे खींचा,उसकी शैतानी हरकत देखकर गुस्से के मारे उनकी आँखें लाल हो रही थीं और होठ फडफडा रहे थे,उन्होंने आव देखा ना ताव दोनों हाथों से उसकी मुण्डी पकड़ी और एक ऐसा झटका दिया कि उसकी गर्दन टूटने की आवाज़ बाहर खड़े सैय्यद साहब ने भी साफ़-साफ़ सुनी .

मरने के बाद भी रफीक की लाश के  चेहरे पर हैरानी के भाव साफ़ दिखाई दे रहे थे.

कडाक कि आवाज़ से घबरा कर सैय्यद साहब बिना बैजनाथ जी के बुलाये ही एक झटके से कमरे में आन घुसे,अन्दर का नज़ारा देखकर उनकी आँखें फटी कि फटी रह गयीं.
बैजनाथ जी ने लड़की के दुपट्टे से उसका खुला पडा सीना ढका और चाक़ू से उसके बन्धन काट दिएऔर सैय्यद साहब को रफीक का चाक़ू पकड़ा  कर  इशारा करते हुये जल्दी से पलंग पर चढ गये,सैय्यद साहब भी उनके पीछे -पीछे पलंग पर चढ गए और सबसे पहले बारी-बारी दोनों बच्चों की नब्ज़ टटोली,शुक्र है दोनों भाई -बहन ज़िंदा हैं ,धीमी चलती नब्ज़ को महसूस करते हुए  बैजनाथ जी ने सोचा और फिर दोनों ने  चाकू से बच्चों की रस्सियाँ काट डालीं  और  संभाल कर उन्हें पलंग पर लिटा दिया तब बैजनाथ जी ने सैय्यद साहब से उनके लिए पानी लाने को कहा और खुद दोनों के बंधन काटने  में लग गए.जब तक सैय्यद साहब बच्चों के लिए लोटे में पानी लेकर आये बैजनाथ जी उनके बन्धन चाक़ू से काट  चुके थे और बेहोश बच्चों के हाथ-पैर सहला रहे थे.  

सैय्यद साहब को बच्चों के पास छोड़ बैजनाथ जी बेहोश फैज़ की तरफ  मुड़े और उन्होंने फुर्ती से उसके बन्धन काट डाले और लोटे के पानी में एक कपड़ा भिगोकर उससे धीरे-धीरे फैज़ के होठों से खून साफ़ करने लगे.

''बच्चों को दो-दो घूँट पानी पिलाकर आप चाक़ू से बारी-बारी सब के बन्धन काटने की फिक्र करिए,मैं ज़रा फैज़ को संभालता हूँ.''बैजनाथ जी सैय्यद साहब को बोले.''पर ज़रा ध्यान रखियेगा कोई आवाज़ ना हो,इसका दूसरा साथी कहीं नज़र नहीं आ रहा .''

''इसका दूसरा साथी इन सब का बाप नियादर ही है,घर के सब लोग यहीं बंधे पड़े हैं तो वो भी यहीं-कहीं आस-पास ही होगा.''सैय्यद साहब नफरत भरे शब्दों में बोले.

 ''अंसार!!, अंसार!!,कहाँ मर गया नामुराद.''  तभी बाहर से धीमी किन्तु तीखी आवाज़ सुनाई दी और साथ ही किसी के इधर  कमरे कि तरफ बढ़ते क़दमों की आह्ट सुनाई दी,कोई उस कमरे कि तरफ ही बढ़ा आ रहा था.

 सैय्यद साहब अपनी बेगम  के मुंह की पट्टी खोलकर उसके हाथ के बन्धन काट चुके थे और उसके पैरों के बन्धन काटने  जा रहे थे कि आवाज़ सुनकर वहीं के वहीं रुक गए. 

बैजनाथ जी फैज़ के चेहरे को  भीगे हुए  कपडे से पोंछते हुए उसे होश में लाने की कोशिश कर रहे थे कि वो भी बाहर से आती आवाज़ को सुनकर एक बार को ठिठक गए और फिर उन्होंने सैय्यद साहब को वहींके वहीं पलंग की ओट में छुप जाने का इशारा किया और खुद तेज़ी से पीछे हट कर दरवाज़े की ओट में हो गए.
पर लाश ?रफीक की लाश का क्या करते ,वो तो किसी जगमगाते साइन बोर्ड की तरह आँखें फाड़े हैरानी से सामने की तरफ ताके जा रही थी.

उम्मीद से बढ़कर लूट का माल मिलने की ख़ुशी और शानदार कामयाबी पाने की अपनी ही धुन में मस्त नियादर कमरे की तरफ बढ़ा आ रहा था  परन्तु कमरे की चौखट पर पहुँचते ही अन्दर का नज़ारा देखकर  वो वहीं का वहीं थमक के खडा रह गया.उसे अपनी आँखों पे विश्वास ही नहीं हो रहा था लेकिन सामने पड़ी रफीक की लाश जैसे उसे मुंह चिढाये जा रही थी.

सीढियों के नीचे अंसार को ना पाकर उसे बहुत गुस्सा आया था कि हरामजादे से सबर नहीं हुआ था,और उसके आगाह करने के बावजूद अंसार सीढ़ियों की अपनी ड्यूटी  छोड़  बिना उसका इंतज़ार किये छोकरियों से  मज़ा लूटने  उनके  कमरे में पहुँच गया था.

लेकिन कमरे के अन्दर पड़ी रफीक की लाश,तमाम बंधनों से आज़ाद दीवान  पर बैठी अपने कपडे सम्हालती करीमन  और सब बन्धनों से मुक्त धीरे-धीरे कराहता फैज़ उसे कुछ और ही कहानी समझा रहे थे.

फिर जैसे नियादर सोते से जागा,उसने अपने हाथ में थामे हुए दोनों थैले दरवाज़े के पास ही ज़मीन पर रखे  और अपने पाजामे में खोंसा हुआ अपना तमंचा निकाल कर अपने हाथ में ले लिया.दरवाज़े के पीछे खड़े बैजनाथ जी देखते ही रह गए और चीते के जैसी फुर्ती से एक छलांग में नियादर खाट  पर पड़े फैज़  के पास जा पहुंचा और बायें हाथ से उसके बालों को पकड़ कर उसने ऐसा झटका दिया कि आधा-अधूरा होश में आता फैज़ दर्द के मारे बिलबिला उठा और फिर दोबारा से बेहोश होकर निढाल हो गया. 

फैज़ के सर को बड़ी बेदर्दी से  एक झटका देते हुए नियादर गुर्राया,''मैं जानता हूँ कि तुम जो कोई भी हो ,यहीं इसी कमरे में हो ,अगर इस लड़के  की  खैरियत चाहते हो तो फ़ौरन मेरे सामने आ जाओ वरना बिना वक़्त गंवाए मैं इसे अभी के अभी गोली मार दूंगा''. 

''नियादर,लड़के को छोड़ दे,वोज़ख्मी है, और मैं यहाँ हूँ .'' कहते हुए सैय्यद साहब दोनाली हाथ में लिए पलंग की ओट से बाहर होते  हुए उठ खड़े हुए.  

''आज तेरी खैर नहीं सैय्यद ,अंसार की बन्दूक नीचे छोड़ दे  और पीछे हो के दीवार की तरफ मुंह करके खडा हो जा,ज़रा भी होशियारी दिखाने की कोशिश की तो याद रखना तेरे लौंडे का भेजा उड़ा दूंगा,मैं हैरान हूँ  कि यह सब कारनामे तू अकेला कैसे कर गुजरा.''अपना तमंचे वाला हाथ सैय्यद साहब की तरफ तानता हुआ नियादर फुँफकारा.                                                                                                     

'' रुक जा हरामजादे--- ,चिल्लाते हुए कमरे के दरवाज़े से नियादर की तरफ अपनी लाठी ताने  बब्बन दौड़ा.                                                   

शर्फु,लट्टू यहाँ तक कि शमसू  के भी रोकने के बावजूद, अपने साथ बीते हालात से शर्मिन्दा,सारी बातों के लिए खुद को ज़िम्मेदार मानता, ग्लानि का मारा और क्रोध में उबलता,सैय्यद साहब का वफादार बब्बन किसी के रोके नहीं रुका था और अपनी लाठी संभाले चुपके से दालान के हालात का जायजा लेता हुआ बड़े हाल कमरे कि तरफ बढ़ आया था.
कमरे के अन्दर का नज़ारा देखकर तो उसका गुस्सा जैसे सातवें आसमान पर ही जा पहुंचा था और चिल्लाते हुए वो नियादर पर चढ़ दौड़ा था .  

बब्बन कि ललकार सुन नियादर बड़ी तेज़ी से पलटा और उसने अपनी तरफ भाग कर आते बब्बन पर तमंचा दाग दिया.गोली बब्बन की पसलियाँ  तोडती हुई उस के दिल के पार निकल गई,उस के मुंह से एक दिल दहला देने वाली चीख निकली जिसने सारी हवेली को हिला कर रख दिया और फिर एक खौफनाक खामोशी चारों तरफ फ़ैल गई. 
 शहीद होकर बब्बन जैसे अपनी सारी गलतियों को ही धो गया.

तभी नियादर कि नज़र अपनी तरफ झपट कर बढ़ते बैजनाथ जी पर पड़ी और उसने अपने हाथ का तमंचा खींच कर उन पर दे मारा .

जो  फुर्ती  नियादर ने बैजनाथ जी पर पत्थर कि तरह तमंचा फैंक कर मारने में दिखाई थी वो फुर्ती बैजनाथ जी नहीं दिखा पाए और सनसनाता हुआ तमंचा बैजनाथ जी कीआँखों के ठीक बीचोंबीच इतनी जोर से जाकर टकराया कि उनकी आँखों के आगे सितारे नाचने लगे.और कोई होता तो वहीं बैठ जाता परन्तु बैजनाथ जी ने अपने सर को इधर-उधर झटका और अपने को संभाल कर नियादर कि तरफ बढे.
                                                                                                                                                                                                       जब तक तमंचे की चोट से  बैजनाथ जी उबरे,  नियादर ने किरपाण जैसे लम्बे छुरे से उन पर हमला बोल दिया.                                                                                                                                                                       

दोनों के हाथ में छुरे थे और दोनों एक-दुसरे को मरने- मारने पर उतारू थे.
नियादर भयानक लड़ाका साबित हो रहा था,और उसका हर वार बैजनाथ जी को ज़ख़्मी और कमज़ोर किये दे रहा था.बैजनाथ जी का चेहरा और उनके दोनों बाजू नियादर के हमलों से लहू-लुहान हो रहे थे,पर फिर भी वो बिना मुंह से कोई आवाज़ निकाले  जी-जान से नियादर को काबू करने क़ि कोशिश में उस से जूझ रहे थे.

इतने में पीछे से सैय्यद साहब ने आकर बब्बन क़ि लाठी उठाई और घुमा के उसका वार नियादर क़ि खोपड़ी पर किया.

नियादर क़ि खोपड़ी चकरा गई,उसकी आँखों के सामने रंग-बिरंगे सितारे नाचने लगे और वो जहां का तहां खडा रह गया.

बैजनाथ जी ने अपने हाथ का चाक़ू फैंक दिया और आगे बढ़कर नियादर का छुरे  वाला हाथ थाम कर मरोड़ना शुरू किया, वो उसके हाथ से छुरा निकाल लेना चाहते थे,पर नियादर ने छुरा अपने हाथ से नहीं छोड़ा और बायाँ  हाथ बढ़ाकर दोनों हाथों का जोर लगाकर अपना छुरे  वाला हाथ बैजनाथ जी की पकड़ से छुडाने की कोशिश करने लगा.इतने में बैजनाथ जी ने उसे ज़मीन पर गिराने के लिए टंगड़ी मारी.

नियादर इतने जोर से ज़मीन पर गिरा कि उसके मुड़े हुए हाथ में थामा हुआ उसका छुरा उसके अपने ही जोर से उसकी पसलियों से होता हुआ उसके दिल के आर-पार हो गया.

सैय्यद साहब ने आगे बढ़कर बैजनाथ जी को थामा और उन्हें फैज़ के पास खाट पर लेट जाने को कहा,पर बैजनाथ जी लेटे नहीं बस  लेटे पड़े फैज़ के पास खाट पर  बैठ गए.
   (डकैतों से निपटारा तो हो गया पर कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई.
 आगे का हाल कहेंगे और पढेंगे आगे आने वाली किश्तों में .तब तक के लिए 
 राम-राम )

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