Sunday, March 6, 2011

बैजनाथ- 8

यही सब बातें सोचते हुए बैजनाथ जी ने बड़ी सावधानी से पहली मंजिल से नीचे की ओर जाती सीढ़ियों का रुख कियाऔर बिना आवाज़ किये एक-एक करके सीढियां उतरने लगे.सीढ़ियों के मोड़ पर पहुँच कर वो रुक गए और अपने अगले कदम के बारे में सोचने लगे.
नीचे अंसार नाम का जो आदमी दोनाली लिए खडा था उस की तरफ से तो उन्हें  कोई अंदेशा नहीं था,उन्हें पूरा भरोसा था कि चाहे वो कितना भी चुस्त और फुर्तीला क्यों ना हो उसे वो बड़े आराम से काबू में कर सकते थे,पर इस अंसार के अलावा नीचे और कितने लुटेरे थे और वो कहाँ-कहाँ थे,और क्या कर रहे थे ये न उन्हें मालूम था और न ही इस वक़्त वो इन ज़रूरी सवालों के जवाब ढूँढने में जुट सकते थे.
उन्हें जो भी करना था जल्दी  करना था और बिना वक़्त गवांये तुरंत करना था.उन्हें इतना  तो अंदाजा था कि घर के मर्दों का वक्ती डेरा ड्योढ़ी के आजू-बाजू वाले दीवान खाने या  बड़ी बैठक में ही होगा जबकि औरतें और बच्चे अलग से किन्हीं दुसरे कमरों में होंगे. 
कहाँ होंगे, एक जगह होंगे या अलग-अलग कमरों में होंगे ये अभी मालूम नहीं हो सकता था.फिर तुरन्त उनके दिमाग में आया कि औरतें और बच्चे रात में चाहे कोई कहीं भी सोये हों पर इस वक़्त बदमाशों ने उन्हें ज़रूर एक जगह इकट्ठा करके रखा हुआ होगा.सारे हालात का अंदाजा लगाते हुए  उन्होंने  अंसार से  निपटने  के बाद पहले  ड्योढ़ी कि तरफ बढ़ने का इरादा बनाया .
पर यहाँ  एक और बहुत बड़ी समस्या होने वाली थी,अंसार को काबू में करने के बाद उसके हाथ-पाँव बाँधने में बहुत वक़्त ज़ाया होने वाला था और इस बीच कोई भी कहीं से भी अचानक टपक  सकता था और सब गुड-गोबर होने का ख़तरा था इसलिए उसका कोई दूसरा पक्का इंतजाम करना ज़रूरी था. ये सब सोचते हुए उन्होंने मन ही मन कुछ निश्चय किया और सीढ़ियों के मोड़ पर धीरे से एक कदम आगे सरक कर गर्दन घुमा कर नीचे झांका.

नीचे सीढ़ियों के दहाने पर अभी भी पहले ही की तरह सीढियों की तरफ पीठ किये दोनों पैर फैलाए, अंसार हाथों में दोनाली थामे खडा  था. 

बैजनाथ जी अपनी नज़रें अंसार की पीठ पर जमाये दम साधे एक-एक कदम ,बिना कोई आवाज़ किये आगे बढ़ा रहे थे.इस वक़्त उनका सारा ध्यान अंसार पर था और पूरा बदन मौका पड़ते ही झपट कर उस पर वार करने  को तैयार था.


पर अंसार को खबर न लग सकी और बैजनाथ जी ऐन उस के पीछे जा खड़े हुए और उनके दोनों हाथ नाग-पाश की तरह उसकी गर्दन से लिपट गए.इस से पहले की अंसार कुछ समझ पाता बैजनाथ जी ने  दोनों हाथों के एक झटके से उसकी गर्दन तोड़ दी और बिना कोई वक़्त गंवाए बांया  हाथ बढ़ा कर उसकी दोनाली बन्दूक थाम कर अपने बांये कंधे पर लटकाई और दांये हाथ से  उसकी नीचे को लुढ़कती लाश  को थामकर अपने कंधे पर लादा और,मन ही मन अंसार की आत्मा से माफ़ी मांगते हुए, बड़ी तेज़ी से ड्योढ़ी की तरफ बढ़े. 
  कुछ कदम आगे बढ़ते ही ड्योढ़ी से पहले दायीं ओर उन्हें पाखाने का दरवाज़ा  नज़र आया .बैजनाथ जी लाश को कंधे पर लादे -लादे दरवाज़े  में घुसे. अन्दर लाइन में चार अलग-अलग पाखाने थे,जहां पेशाब और पाखाने की बदबू को फिनायल से ख़तम करने की भरपूर कोशिश की गयी थी पर बदबू रोकी नहीं जा सकी थी. बैजनाथ जी ने आखरी  पाखाने का दरवाज़ा खोलकर लाश को अन्दर डाला और दरवाज़े को बन्द कर  दिया. 
बैजनाथ जी बन्दूक हाथ में थामे  वापिस पाखाने के दरवाज़े की तरफ लौटे और फिर उन्होंने बड़ी सतर्क नज़र बाहर दालान में सब तरफ डाली.कहीं कोई हरक़त  नहीं,हर तरफ सन्नाटा था . 
बैजनाथ जी ने मन ही मन बदमाशों की कार्य कुशलता की बड़ी तारीफ़ की जो बिना किसी शोर-शराबे के बड़ी शान्ति से अपनी कारगुजारी में लगे हुए थे.अगर दो हथियारबन्द बदमाशों से उनका पाला न पड़ चुका होता तो वो कभी भी ये मानने को तैय्यार न होते की हवेली में कहीं  कुछ अनहोना घट रहा था, फिर तो वो भी बब्बन की तरह यही मानने को मजबूर हो जाते कि बब्बन के साथ जो भी हुआ उसके लिए सिर्फ शर्फु ही ज़िम्मेदार था.


पर जो कुछ भी उनके सामने आया था उस से साफ़ ज़ाहिर था कि हवेली में ना सिर्फ कुछ अनहोना हो रहा था बल्कि जो कुछ भी हो रहा था ,बहुत खतरनाक हो रहा था और ये सन्नाटा तूफ़ान से पहले की शान्ति की तरह ही था. 


बैजनाथ जी ने बन्दूक अपने बायें कंधे पर लटकाई और धीरे-धीरे दीवार से चिपके-चिपके ड्योढ़ी की तरफ बढ़े.ड्योढ़ी के दरवाज़े पर पहुँच कर धीरे से गर्दन आगे बढ़ा कर उन्होंने ड्योढ़ी में झांका ,अन्दर बब्बन वाली ही हालत में एक और आदमी फर्श पर बंधा हुआ पडा था.ये ज़रूर शर्फु होगा,बैजनाथ जी ने सोचा.


बाकी ड्योढ़ी खाली थी.ड्योढ़ी के बाईं ओर एक बन्द  दरवाज़ा  था जिसकी कुण्डी बाहर से लगी हुई थी.दायीं ओर भी एक दरवाज़ा था जो खुला था और उसमें से एक लालटेन का बड़ा मद्धम प्रकाश बाहर आ रहा था.यानी जिस कमरे का यह दरवाज़ा था उसमें कुछ ना कुछ गड़बड़ वाली बात हो सकती थी.


बैजनाथ जी धीरे से ड्योढ़ी में दाखिल हुए और दीवार से लगे-लगे प्रकाशित कमरे के दरवाज़े की ओर बड़ी खामोशी से बढ़ने लगे.तभी अन्दर कोई बड़ी दबी हुई आवाज़ में खाँसा.बैजनाथ जी दीवार से एकदम चिपक कर खड़े हो गए .अन्दर कुर्सी खिसकने की सी आवाज़ हुई,या तो किसी ने कुर्सी अपनी ओर खींची थी या किसी ने कुर्सी से खड़े होकर उसे पीछे की तरफ खिसकाया था. फिर ऐसे लगा जैसे कोई आगे की तरफ बढ़ा हो और उसके बाद एक लम्बी परछाईं कमरे के दरवाज़े से निकलती हुई ड्योढ़ी के फर्श पर बढ़ने लगी,कोई बेफिक्री से कमरे से बाहर की तरफ आ रहा था, परछाईं के दोनों हाथ खाली थे.


अन्दर वाले आदमी ने ज्यों ही कमरे से बाहर ड्योढ़ी में कदम रखा बैजनाथ जी ने उसकी गर्दन थामने के लिए अपने दोनों हाथ बड़ी फुर्ती से आगे बढाए,पर बायें कंधे पर रखी बन्दूक एक झटके से बायें हाथ पर आगे खिसक आई जिसके कारण  बैजनाथ जी उसकी गर्दन  ना थाम सके और  वो आदमी अचानक से हुए इस हमले और बन्दूक की नाल  मुंह पर टकराने से एकदम हडबडा कर पीछे को हटा ,उसकी इस हडबडाहट का बैजनाथ जी ने पूरा-पूरा फ़ायदा उठाया. इस बार उन्होंने  उस आदमी को सँभलने का या चीखने-चिल्लाने का कोई मौका नहीं दिया,और झपट कर उसका मुंह दबोच लिया. शुक्र है जो वो आदमी बिना चीखे- चिल्लाए काबू में आ गया वरना तो जो भी होता बुरा ही होता.


वो आदमी बैजनाथ जी की मज़बूत पकड़ से छूटने की जी तोड़ कोशिश कर रहा था.वो अपने हाथ पीछे करके बैजनाथ जी की गर्दन थामने की भी कोशिश कर रहा था, पर कुछ कर नहीं पा रहा था.फिर भी जिस तेज़ी और फुर्ती  से वो अपने मज़बूत हाथ-पैर इधर-उधर चला रहा था उस से बैजनाथ जी को साफ़ मालूम पड़ गया कि  यह शख्स ऐसे ही काबू में आने वाला नहीं है तो उन्होंने उसके मुंह पर रखी अपनी दायीं हथेली पर अपनी बाईं हथेली टिकाई और दायीं हथेली को हटाकर बाईं हथेली से उसका मुंह दबाया .इस बीच वो आदमी भी समझ गया था कि यह अपना हाथ बदलना चाह  रहा है तो उसने  बैजनाथ जी कि बाईं हथेली को अपने दोनों हाथों से पकड़कर अपना मुंह छुडवाने के लिए पूरा जोर लगाया पर इस से पहले कि  वो कुछ करने में कामयाब होता  उसकी गर्दन और कंधे के जोड़ पर बैजनाथ जी की तिरछी  हथेली  की ऐसी चोट पड़ी कि वो वहीं बेहोश हो कर ढेर हो गया.


बैजनाथ जी ने इस आदमी का भी छत वाले आदमी जैसा हाल किया,और सबकी निगाहों से बचाने के लिए बाईं तरफ ड्योढ़ी में डाल  दिया.


 फिर उन्होंने देखा कि सामने दीवार के साथ लगे बड़े से तखत पर दो लोग और बंधे पड़े थे.एक नौजवान लड़का था और दूसरा पचपनएक  साल के करीब की उम्र का खासा तंदरुस्त आदमी था.दोनों होश में थे और बैजनाथ जी की तरफ अपनी फटी-फटी  आँखों से बितर-बितर ताक रहे थे.बैजनाथ जी ने दोनों की तरफ आश्वासन पूर्ण निगाह डाली और तुरन्त हवेली के दरवाज़े की खिड़की को खोलने के लिए तेज़ी से आगे बढे . 


उन्होंने  हाथ आगे बढ़ा कर खिड़की की सांकल  को धीरे से खोला ,और फिर धीरे-धीरे पूरी खिड़की को खोलकर थोड़ा सा  पीछे को हट गए .बैजनाथ जी ये सोच कर कि कहीं लट्टू सिंह जल्दबाजी में कोई हरकत नकरबैठे,आवाज़ धीमी रखते हुए जल्दी-जल्दी बोले,''लट्टू भाई ,ये मैं हूँ बैजनाथ ,कोई चिंता कि बात नहीं है,पर आवाज़ बिलकुल मत करना और चुपचाप अन्दर आ जाओ,बिलकुल खामोश रहना ''.


फिर गली में खुली खिड़की के दूसरी तरफ, एक हाथ में डंडा थामे और दुसरे में लोटा , श्री लट्टू सिंह प्रकट हुए.उनके पीछे एक हाथ अपनी तोंद पर रखे और दुसरे में लालटेन लिए बब्बन पहलवान भी खड़े थे.बैजनाथ जी ने लट्टू सिंह के  हाथ से डंडा पकड़ा और उन्हें सहारा देकर खिड़की से अन्दर दाखिल होने में मदद की,उनके पीछे बब्बन मियाँ अन्दर दाखिल हुए और अन्दर आकर उन्होंने तुरन्त खिड़की को बंद कर दिया. 

अन्दर आते ही लट्टू सिंह एकदम बैजनाथ जी से लिपट गया और  बार-बार  उनका माथा चूमने लगा .उसकी आँखों से मारे ख़ुशी के आंसूओं की धार बह रही थी,और उसके होंठ थरथरा रहे थे .


बैजनाथजी ने धीरे से उसके आंसू पोंछे और फुसफुसाते हुए  बोले,''लट्टू भाई,असली ख़तरा अभी टला नहीं है,बदमाश अभी भी घर के भीतर ही हैं,घर की औरतें और बच्चों को अभी उनके कब्ज़े से छुडाना बाकी है,इसलिए जल्दी से पहले आप शर्फु को खोलिए और इसे होश में लाईये,ध्यान रखना ये कोई ज्यादा आवाज़  न करे  ,मैं तब तक अन्दर बैठक में बंधे पड़े लोगों को देखता हूँ ''. 


''ये तो सैय्यद साहब और उनका बेटा शमसू हैं, ''बैठक में झांकते हुए लट्टू सिंह फुसफुसायाऔर जल्दी-जल्दी शर्फु की रस्सियाँ खोलने लगा.


बैजनाथ जी ने जल्दी-जल्दी पहले सैय्यद  साहब और शमसू के मुंह पर बंधा  हुआ कपड़ा खोला और फिर उनकी रस्सियाँ नूरे के चाक़ू से काट डालींऔरबोले,''सैय्यद साहब,वक़्त बिलकुल नहीं है,इसलिए बाकी बातें बाद में पहले आप   फ़टाफ़ट मुझे ये बताइये कि अन्दर कितने बदमाश हैं और वो कहाँ-कहाँ  हो सकते हैं  ?''


सैय्यद साहब ने अपने हाथों और पैरों को सहलाते हुए बड़ी धीमी आवाज़ में पीने के लिए पानी माँगा,बैजनाथ जी ने उन्हें तखत के पास मेज़ पर  रखा पानी का लोटा पकड़ा दिया,सैय्यद साहब ने लोटे से चार घूँट पानी पीया और लोटा बैजनाथ जी को पकड़ा दिया.बैजनाथ जी ने पानी का लोटा शमसू के हाथों में दिया और सैय्यद साहब का मुंह ताकने लगे.सैय्यद साहब धीमी आवाज़ में  जल्दी-जल्दी बताने लगे,''ये सब नियादर और उसके साथियों का किया धरा है,नियादर समेत ये कुल पांच डकैत हैं.ये जिसे तुमने बेहोश किया है ,इसके अलावा अन्दर नियादर और उसके तीन साथी और हैं.एक मोटा हब्शी जैसा इंसान जिसे नियादर नूरा कह के बुला रहा था,उसे नियादर ने ऊपर छत पर पहरा देने के लिए भेजा था ,दूसरा रफीक और तीसरा अंसार हैं. इस शफीक को हमारे सर पे बिठा के बाकी लोग अन्दर जनान खाने कि तरफ गए थे.अंसार के पास दोनाली बन्दूक है,नियादर के पास देसी तमंचा है और बाकी सबके पास रामपुरी चाक़ू हैं.छुरे जैसा खतरनाक एक बड़ा चाक़ू नियादर के पास और है शायद चाक़ू अंसार के पास भी हो.'' इतना सब एक सांस में कह के सैय्यद साहब बैजनाथ जी की तरफ सवालिया निगाहों से देखने लगे,जैसे पूछ रहे हों कि अब तुम्हारा इरादा क्या है.


''घर वालों में से अन्दर कौन-कौन है?'' बैजनाथ जी ने पूछा.


''तुम हवेली में ऊपर छत के रास्ते दाखिल हुए हो ना?''सैय्यद साहब ने सवाल के जवाब में सवाल किया.


''जी,ठीक फरमाया आपने,और वो मोटा नूरा इसी के जैसी हालत में ऊपर छत पर बेहोश पडा है''.बैजनाथ जी ने बाहर ड्योढ़ी में ज़मीन पर नंगे - बंधे पड़े शफीक की तरफ इशारा करते हुए कहा.


''मेरा अंदाजा भी यही  था. नीचे आते हुए तुमने गौर किया  होगा कि ऊपर की दोनों मन्ज़िलों पर सफेदी और रंग-रोगन का काम अभी भी जारी है,जिसकी वज़ह से हम सब वक्ती तौर पर नीचे के हिस्से में रह रहे  हैं.


अन्दर सामने दालान के दूसरी तरफ जो लंबा बरामदा है उसके बाईं ओर एक कमरा है जिसमें  इन दिनों हमारी अम्मी हुज़ूर रह रहीं हैं ,उनके कमरे में उनके साथ उनकी पुरानी खिदमतगार शफ्फो बुआ भी रहती हैं.


बरामदे के दायीं ओर बड़ा हाल कमरा है,उसमें हमारी बेगम हमारी दोनों बेटियों के साथ  रह रही हैं,उनके साथ ही घर में नौकरानी की तरह कम और घर की मैनेजर की तरह समझी जाने वाली करीमन भी रहती है. रात में आजकल फैज़ भी अपनी अम्मी के ही पास सोता है, इन के अलावा कल ही शाम को हमारी बड़ी बेटी अपने दुल्हे  मियाँ और अपने दो बच्चों के साथ दिल्ली से आयी हैं.वो लोग हॉल कमरे के पीछे  भीतर की तरफ वाले कमरे में ठहरे हैं.जिस का रास्ता हाल कमरे से ही होकर है.''सैय्यद साहब ने ये तमाम ब्यौरा बैजनाथ जी को जल्दी-जल्दी कह सुनाया.
                                                                                                                                                           
  दोनाली दिखाते हुए बैजनाथ जी ने सैयाद साहब को कहा,''ये रही अंसार की  दोनाली और जैसा मैंने आपको बताया, नूरा छत पर शफीक जैसी ही हालत में बेहोश पडा है,अब आप ज़रा जल्दी से पुलिस चौकी फोन करके उन्हें यहाँ की  खबर  कीजिये,उन्हें यह ज़रूर कह दीजिएगा कि इस बीच हाथापाई में  एक डाकू मारा जा चुका है, पुलिस जितनी जल्दी यहाँ पहुंचेगी ,हम सब के लिए उतना ही अच्छा होगा, तब तक मैं अन्दर की खोज-खबर लेता हूँ''.


ये सब नियादर का किया धरा है सैय्यद साहब से ये जानकर बैजनाथ जी बहुत चिंतित हो गए थे.वो नियादर और उसके गैंग के बारे में कई बार बहुत से लोगों से काफी कुछ सुन चुके थे.नियादर का मुख्य साथी और उसका दाहिना हाथ माना जाने वाला अंसार किसी भी मायने में नियादर से कम नहीं था.शुक्र है कि अंसार मारा जा चुका था और नियादर के बाक़ी तीन साथियों में से  दो बेहोश पड़े थे,एक छत पर और दूसरा यहाँ नीचे बैठक में.पर नियादर खुद अभी भी अपने एक साथी के साथ अन्दर जनानखाने में था, जो कि कम चिन्ता कि बात नहीं थी.खासकर उसकी स्त्रीयों पर गन्दी नज़र रखने कि आदत उन्हें ज़्यादा परेशान किये दे रही थी.                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                             


इस बीच लट्टू सिंह फर्शु को खोलकर उसे पानी पिलाने की  कोशिश कर रहा था.
बैजनाथ जी ने दोनाली बन्दूक सैय्यद साहब को पकड़ाई और उनसे कहा,''अगर बदमाशों में से कोई इधर आ निकलता है तो बेधड़क उसे गोली मार दीजिएगा,अन्दर दो डकैत हैं और आपके पास इस बन्दूक में दो - दो गोलियां एकदम तैयार हैं इसलिए घबराने की ज़रा भी ज़रुरत नहीं है ,फिर बैजनाथ जी बाहर ड्योढ़ी में आये और उन्होंने ने लट्टू और बब्बन को कहा,''आप लोग फर्शु समेत तीन जाने हो ,अपने लट्ठ संभाल कर चौकन्ने रहना ,कोई सैय्यद साहब तक या बाहर जाने ना पाए,मैं .....''


बैजनाथ जी अभी लट्टू से बात ही कर रहे थे की सैय्यद साहब दोनाली हाथ में लिए उनके पास आन खड़े हुए और बोले,''सुनो भाई बैजनाथ, हमारी तुमसे  गुजारिश है कि हमें भी अपने साथ अन्दर आने दो हम तुम्हारे मददगार ही साबित होंगे ,यकीन मानो हमारी वज़ह से कोई परेशानी नहीं होने पाएगी वो तो हम सोये हुए थे कि डाकुओं ने आकर दबोच लिया वरना तीन-चार के काबू में तो हम जल्दी से आज भी आने वाले नहीं हैं,यहाँ शमसू ,लट्टू सिंह और बब्बन के साथ रहेगा और पुलिस को फोन भी कर देगा हम तुम्हारे साथ चलते हैं.''

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